Friday, August 1, 2008

सुनहु भरत भावी प्रबल

Hare Rama
जनम मरन सब दुख भोगा हानि लाभ प्रिय मिलन बियोगा
काल करम बस हौहिं गोसाईं बरबस राति दिवस की नाईं
सुख हरषहिं जड़ दुख बिलखाहीं दोउ सम धीर धरहिं मन माहीं
धीरज धरहु बिबेकु बिचारी छाड़िअ सोच सकल हितकारी

प्रथम बासु तमसा भयउ दूसर सुरसरि तीर
न्हाई रहे जलपानु करि सिय समेत दोउ बीर


सुनहु भरत भावी प्रबल बिलखि कहेउ मुनिनाथ
हानि लाभु जीवन मरनु जसु अपजसु बिधि हाथ

अस बिचारि केहि देइअ दोसू ब्यरथ काहि पर कीजिअ रोसू
तात बिचारु केहि करहु मन माहीं सोच जोगु दसरथु नृपु नाहीं
सोचिअ बिप्र जो बेद बिहीना तजि निज धरमु बिषय लयलीना
सोचिअ नृपति जो नीति जाना जेहि प्रजा प्रिय प्रान समाना
सोचिअ बयसु कृपन धनवानू जो अतिथि सिव भगति सुजानू
सोचिअ सूद्रु बिप्र अवमानी मुखर मानप्रिय ग्यान गुमानी
सोचिअ पुनि पति बंचक नारी कुटिल कलहप्रिय इच्छाचारी
सोचिअ बटु निज ब्रतु परिहरई जो नहिं गुर आयसु अनुसरई

सोचिअ गृही जो मोह बस करइ करम पथ त्याग।
सोचिअ जति प्रंपच रत बिगत बिबेक बिराग

बैखानस सोइ सोचै जोगु तपु बिहाइ जेहि भावइ भोगू
सोचिअ पिसुन अकारन क्रोधी जननि जनक गुर बंधु बिरोधी
सब बिधि सोचिअ पर अपकारी निज तनु पोषक निरदय भारी
सोचनीय सबहि बिधि सोई जो छाड़ि छलु हरि जन होई
सोचनीय नहिं कोसलराऊ भुवन चारिदस प्रगट प्रभाऊ
भयउ अहइ अब होनिहारा भूप भरत जस पिता तुम्हारा
बिधि हरि हरु सुरपति दिसिनाथा। बरनहिं सब दसरथ गुन गाथा

कहहु तात केहि भाँति कोउ करिहि बड़ाई तासु।
राम लखन तुम्ह सत्रुहन सरिस सुअन सुचि जासु

सब प्रकार भूपति बड़भागी बादि बिषादु करिअ तेहि लागी
Hare Rama