बरषा गत निर्मल रितु आई सुधि न तात सीता कै पाई
एक बार कैसेहुँ सुधि जानौं कालहु जीत निमिष महुँ आनौं
एक बार कैसेहुँ सुधि जानौं कालहु जीत निमिष महुँ आनौं
बचन सुनत सब बानर जहँ तहँ चले तुरंत
तब सुग्रीवँ बोलाए अंगद नल हनुमंत
सुनहु नील अंगद हनुमाना जामवंत मतिधीर सुजाना
सकल सुभट मिलि दच्छिन जाहू सीता सुधि पूँछेउ सब काहू
सकल सुभट मिलि दच्छिन जाहू सीता सुधि पूँछेउ सब काहू
पाछें पवन तनय सिरु नावा
जानि काज प्रभु निकट बोलावा
परसा सीस सरोरुह पानी
परसा सीस सरोरुह पानी
करमुद्रिका दीन्हि जन जानी
बहु प्रकार सीतहि समुझाएहु
कहि बल बिरह बेगि तुम्ह आएहु
हनुमत जन्म सुफल करि माना चलेउ हृदयँ धरि कृपानिधाना
जद्यपि प्रभु जानत सब बाता राजनीति राखत सुरत्राता
चले सकल बन खोजत सरिता सर गिरि खोह
राम काज लयलीन मन बिसरा तन कर छोह