Sunday, April 20, 2008

एक बार कैसेहुँ सुधि जानौं कालहु जीत निमिष महुँ आनौं

बरषा गत निर्मल रितु आई सुधि तात सीता कै पाई
एक बार कैसेहुँ सुधि जानौं कालहु जीत निमिष महुँ आनौं



बचन सुनत सब बानर जहँ तहँ चले तुरंत
तब सुग्रीवँ बोलाए अंगद नल हनुमंत


सुनहु नील अंगद हनुमाना जामवंत मतिधीर सुजाना
सकल सुभट मिलि दच्छिन जाहू सीता सुधि पूँछेउ सब काहू


पाछें पवन तनय सिरु नावा 
जानि काज प्रभु निकट बोलावा
परसा सीस सरोरुह पानी 
करमुद्रिका दीन्हि जन जानी


बहु प्रकार सीतहि समुझाएहु 
कहि बल बिरह बेगि तुम्ह आएहु

हनुमत जन्म सुफल करि माना चलेउ हृदयँ धरि कृपानिधाना


जद्यपि प्रभु जानत सब बाता राजनीति राखत सुरत्राता
चले सकल बन खोजत सरिता सर गिरि खोह
राम काज लयलीन मन बिसरा तन कर छोह