Wednesday, April 16, 2008

आगें चले बहुरि रघुराया रिष्यमूक परवत निअराया

आगें चले बहुरि रघुराया रिष्यमूक परवत निअराया
तहँ रह सचिव सहित सुग्रीवा आवत देखि अतुल बल सींवा
अति सभीत कह सुनु हनुमाना पुरुष जुगल बल रूप निधाना
धरि बटु रूप देखु तैं जाई कहेसु जानि जियँ सयन बुझाई
पठए बालि होहिं मन मैला भागौं तुरत तजौं यह सैला
बिप्र रूप धरि कपि तहँ गयऊ माथ नाइ पूछत अस भयऊ
को तुम्ह स्यामल गौर सरीरा छत्री रूप फिरहु बन बीरा
कठिन भूमि कोमल पद गामी कवन हेतु बिचरहु बन स्वामी
मृदुल मनोहर सुंदर गाता सहत दुसह बन आतप बाता
की तुम्ह तीनि देव महँ कोऊ नर नारायन की तुम्ह दोऊ

जग कारन तारन भव भंजन धरनी भार
की तुम्ह अकिल भुवन पति लीन्ह मनुज अवतार

कोसलेस दसरथ के जाए  हम पितु बचन मानि बन आए
नाम राम लछिमन दौउ भाई संग नारि सुकुमारि सुहाई
इहाँ हरि निसिचर बैदेही बिप्र फिरहिं हम खोजत तेही


आपन चरित कहा हम गाई कहहु बिप्र निज कथा बुझाई

प्रभु पहिचानि परेउ गहि चरना सो सुख उमा नहिं बरना
पुलकित तन मुख आव बचना देखत रुचिर बेष कै रचना
पुनि धीरजु धरि अस्तुति कीन्ही हरष हृदयँ निज नाथहि चीन्ही

मोर न्याउ मैं पूछा साईं तुम्ह पूछहु कस नर की नाईं
तव माया बस फिरउँ भुलाना ता ते मैं नहिं प्रभु पहिचाना


एकु मैं मंद मोहबस कुटिल हृदय अग्यान
पुनि प्रभु मोहि बिसारेउ दीनबंधु भगवान

जदपि नाथ बहु अवगुन मोरें सेवक प्रभुहि परै जनि भोरें
नाथ जीव तव मायाँ मोहा सो निस्तरइ तुम्हारेहिं छोहा
ता पर मैं रघुबीर दोहाई जानउँ नहिं कछु भजन उपाई
सेवक सुत पति मातु भरोसें रहइ असोच बनइ प्रभु पोसें
अस कहि परेउ चरन अकुलाई निज तनु प्रगटि प्रीति उर छाई
तब रघुपति उठाइ उर लावा निज लोचन जल सींचि जुड़ावा
सुनु कपि जियँ मानसि जनि ऊना तैं मम प्रिय लछिमन ते दूना
समदरसी मोहि कह सब कोऊ सेवक प्रिय अनन्यगति सोऊ

सो अनन्य जाकें असि मति टरइ हनुमंत
मैं सेवक सचराचर रूप स्वामि भगवंत