Monday, August 25, 2008

बोले लखन मधुर मृदु बानी

Hare Rama 
भयउ बिषादु निषादहि भार  राम सीय महि सयन निहारी
बोले लखन मधुर मृदु बानी ग्यान बिराग भगति रस सानी
काहु कोउ सुख दुख कर दाता निज कृत करम भोग सबु भ्राता
जोग बियोग भोग भल मंदा हित अनहित मध्यम भ्रम फंदा
जनमु मरनु जहँ लगि जग जालू संपती बिपति करमु अरु कालू
धरनि धामु धनु पुर परिवारू सरगु नरकु जहँ लगि ब्यवहारू
देखिअ सुनिअ गुनिअ मन माहीं मोह मूल परमारथु नाहीं

सपनें होइ भिखारि नृप रंकु नाकपति होइ
जागें लाभु हानि कछु तिमि प्रपंच जियँ जोइ


अस बिचारि नहिं कीजअ रोसू काहुहि बादि देइअ दोसू
मोह निसाँ सबु सोवनिहारा देखिअ सपन अनेक प्रकारा
एहिं जग जामिनि जागहिं जोगी परमारथी प्रपंच बियोगी
जानिअ तबहिं जीव जग जागा जब जब बिषय बिलास बिरागा
होइ बिबेकु मोह भ्रम भागा तब रघुनाथ चरन अनुरागा
सखा परम परमारथु एहू मन क्रम बचन राम पद नेहू
राम ब्रह्म परमारथ रूपा अबिगत अलख अनादि अनूपा
सकल बिकार रहित गतभेदा कहि नित नेति निरूपहिं बेदा
भगत भूमि भूसुर सुरभि सुर हित लागि कृपाल
करत चरित धरि मनुज तनु सुनत मिटहि जग जाल
Hare Rama