Tuesday, June 10, 2008

मैं जिमि कथा सुनी भव मोचनि सो प्रसंग सुनु सुमुखि सुलोचनि

जय सिया राम 

मैं
जिमि कथा सुनी भव मोचनि
सो प्रसंग सुनु सुमुखि सुलोचनि
प्रथम दच्छ गृह तव अवतारा सती नाम तब रहा तुम्हारा
दच्छ जग्य तब भा अपमाना तुम्ह अति क्रोध तजे तब प्राना
मम अनुचरन्ह कीन्ह मख भंगा जानहु तुम्ह सो सकल प्रसंगा
तब अति सोच भयउ मन मोरें दुखी भयउँ बियोग प्रिय तोरें
सुंदर बन गिरि सरित तड़ागा कौतुक देखत फिरउँ बेरागा
गिरि सुमेर उत्तर दिसि दूरी नील सैल एक सुन्दर भूरी
तासु कनकमय सिखर सुहाए चारि चारु मोरे मन भाए
तिन्ह पर एक एक बिटप बिसाला बट पीपर पाकरी रसाला
सैलोपरि सर सुंदर सोहा मनि सोपान देखि मन मोहा

सीतल अमल मधुर जल जलज बिपुल बहुरंग
कूजत कल रव हंस गन गुंजत मजुंल भृंग


तेहिं गिरि रुचिर बसइ खग सोई
तासु नास कल्पांत होई
माया कृत गुन दोष अनेका 
मोह मनोज आदि अबिबेका
रहे ब्यापि समस्त जग माहीं

तेहि गिरि निकट कबहुँ नहिं जाहीं
तहँ बसि हरिहि भजइ जिमि कागा 
सो सुनु उमा सहित अनुरागा

पीपर तरु तर ध्यान सो धरई 

जाप जग्य पाकरि तर करई

आँब छाहँ कर मानस पूजा 

तजि हरि भजनु काजु नहिं दूजा

बर तर कह हरि कथा प्रसंगा 

आवहिं सुनहिं अनेक बिहंगा

राम चरित बिचीत्र बिधि नाना 
प्रेम सहित कर सादर गाना

सुनहिं सकल मति बिमल मराला
बसहिं निरंतर जे तेहिं ताला

जब मैं जाइ सो कौतुक देखा 
उर उपजा आनंद बिसेषा

तब कछु काल मराल तनु धरि तहँ कीन्ह निवास
सादर सुनि रघुपति गुन पुनि आयउँ कैलास


जय सिया राम