Thursday, October 9, 2008

ईस्वर जीव भेद प्रभु सकल कहौ समुझाइ

Hare Rama




एक बार प्रभु सुख आसीना लछिमन बचन कहे छलहीना
सुर नर मुनि सचराचर साईं मैं पूछउँ निज प्रभु की नाई
मोहि समुझाइ कहहु सोइ देवा सब तजि करौं चरन रज सेवा
कहहु ग्यान बिराग अरु माया कहहु सो भगति करहु जेहिं दाया

ईस्वर जीव भेद प्रभु सकल कहौ समुझाइ
जातें होइ चरन रति सोक मोह भ्रम जाइ

थोरेहि महँ सब कहउँ बुझाई सुनहु तात मति मन चित लाई
मैं अरु मोर तोर तैं माया। जेहिं बस कीन्हे जीव निकाया
गो गोचर जहँ लगि मन जाई सो सब माया जानेहु भाई
तेहि कर भेद सुनहु तुम्ह सोऊ बिद्या अपर अबिद्या दोऊ
एक दुष्ट अतिसय दुखरूपा जा बस जीव परा भवकूपा।।
एक रचइ जग गुन बस जाकें प्रभु प्रेरित नहिं निज बल ताकें
ग्यान मान जहँ एकउ नाहीं देख ब्रह्म समान सब माही
कहिअ तात सो परम बिरागी तृन सम सिद्धि तीनि गुन त्यागी

माया ईस आपु कहुँ जान कहिअ सो जीव
बंध मोच्छ प्रद सर्बपर माया प्रेरक सीव

धर्म तें बिरति जोग तें ग्याना ग्यान मोच्छप्रद बेद बखाना
जातें बेगि द्रवउँ मैं भाई सो मम भगति भगत सुखदाई
सो सुतंत्र अवलंब आना तेहि आधीन ग्यान बिग्याना
भगति तात अनुपम सुखमूला मिलइ जो संत होइँ अनुकूला
भगति कि साधन कहउँ बखानी सुगम पंथ मोहि पावहिं प्रानी
प्रथमहिं बिप्र चरन अति प्रीती निज निज कर्म निरत श्रुति रीती
एहि कर फल पुनि बिषय बिरागा तब मम धर्म उपज अनुरागा
श्रवनादिक नव भक्ति दृढ़ाहीं मम लीला रति अति मन माहीं
संत चरन पंकज अति प्रेमा मन क्रम बचन भजन दृढ़ नेमा
गुरु पितु मातु बंधु पति देवा सब मोहि कहँ जाने दृढ़ सेवा
मम गुन गावत पुलक सरीरा गदगद गिरा नयन बह नीरा
काम आदि मद दंभ जाकें तात निरंतर बस मैं ताकें

बचन कर्म मन मोरि गति भजनु करहिं निःकाम
तिन्ह के हृदय कमल महुँ करउँ सदा बिश्राम
Hare Rama