पूँछेहु मोहि कि रहौं कहँ मैं पूँछत सकुचाउँ
जहँ न होहु तहँ देहु कहि तुम्हहि देखावौं ठाउँ
सुनि मुनि बचन प्रेम रस साने सकुचि राम मन महुँ मुसुकाने
बालमीकि हँसि कहहिं बहोरी बानी मधुर अमिअ रस बोरी
सुनहु राम अब कहउँ निकेता जहाँ बसहु सिय लखन समेता
जिन्ह के श्रवन समुद्र समाना कथा तुम्हारि सुभग सरि नाना
भरहिं निरंतर होहिं न पूरे तिन्ह के हिय तुम्ह कहुँ गृह रूरे
लोचन चातक जिन्ह करि राखे रहहिं दरस जलधर अभिलाषे
निदरहिं सरित सिंधु सर भारी रूप बिंदु जल होहिं सुखारी
तिन्ह के हृदय सदन सुखदायक बसहु बंधु सिय सह रघुनायक
जसु तुम्हार मानस बिमल हंसिनि जीहा जासु
मुकुताहल गुन गन चुनइ राम बसहु हियँ तासु
प्रभु प्रसाद सुचि सुभग सुबासा सादर जासु लहइ नित नासा
तुम्हहि निबेदित भोजन करहीं प्रभु प्रसाद पट भूषन धरहीं
सीस नवहिं सुर गुरु द्विज देखी प्रीति सहित करि बिनय बिसेषी
कर नित करहिं राम पद पूजा राम भरोस हृदयँ नहि दूजा
चरन राम तीरथ चलि जाहीं राम बसहु तिन्ह के मन माहीं
मंत्रराजु नित जपहिं तुम्हारा पूजहिं तुम्हहि सहित परिवारा
तरपन होम करहिं बिधि नाना बिप्र जेवाँइ देहिं बहु दाना
तुम्ह तें अधिक गुरहि जियँ जानी सकल भायँ सेवहिं सनमानी
सबु करि मागहिं एक फलु राम चरन रति होउ
तिन्ह कें मन मंदिर बसहु सिय रघुनंदन दोउ