Tuesday, June 3, 2008

गिरिजा कहेउँ सो सब इतिहासा मैं जेहि समय गयउँ खग पासा

जय सिया राम 

गिरिजा कहेउँ सो सब इतिहासा मैं जेहि समय गयउँ खग पासा
अब सो कथा सुनहु जेही हेतू गयउ काग पहिं खग कुल केतू
जब रघुनाथ कीन्हि रन क्रीड़ा समुझत चरित होति मोहि ब्रीड़ा
इंद्रजीत कर आपु बँधायो तब नारद मुनि गरुड़ पठायो
बंधन काटि गयो उरगादा उपजा हृदयँ प्रचंड बिषादा
प्रभु बंधन समुझत बहु भाँती करत बिचार उरग आराती
ब्यापक ब्रह्म बिरज बागीसा माया मोह पार परमीसा
सो अवतार सुनेउँ जग माहीं देखेउँ सो प्रभाव कछु नाही


भव बंधन ते छूटहिं नर जपि जा कर नाम
खर्च निसाचर बाँधेउ नागपास सोइ राम


नाना भाँति मनहि समुझावा प्रगट ग्यान हृदयँ भ्रम छावा
खेद खिन्न मन तर्क बढ़ाई भयउ मोहबस तुम्हरिहिं नाई
ब्याकुल गयउ देवरिषि पाहीं कहेसि जो संसय निज मन माहीं
सुनि नारदहि लागि अति दाया सुनु खग प्रबल राम कै माया
जो ग्यानिन्ह कर चित अपहरई बरिआई बिमोह मन करई
जेहिं बहु बार नचावा मोही सोइ ब्यापी बिहंगपति तोही
महामोह उपजा उर तोरें मिटिहि बेगि कहें खग मोरें
चतुरानन पहिं जाहु खगेसा सोइ करेहु जेहि होइ निदेसा


अस कहि चले देवरिषि करत राम गुन गान
हरि माया बल बरनत पुनि पुनि परम सुजान


तब खगपति बिरंचि पहिं गयऊ निज संदेह सुनावत भयऊ
सुनि बिरंचि रामहि सिरु नावा समुझि प्रताप प्रेम अति छावा
मन महुँ करइ बिचार बिधाता माया बस कबि कोबिद ग्याता
हरि माया कर अमिति प्रभावा बिपुल बार जेहिं मोहि नचावा
अग जगमय जग मम उपराजा नहिं आचरज मोह खगराजा
तब बोले बिधि गिरा सुहाई 

जान महेस राम प्रभुताई
बैनतेय संकर पहिं जाहू 

तात अनत पूछहु जनि काहू
तहँ होइहि तव संसय हानी 

चलेउ बिहंग सुनत बिधि बानी


परमातुर बिहंगपति आयउ तब मो पास
जात रहेउँ कुबेर गृह रहिहु उमा कैलास


तेहिं मम पद सादर सिरु नावा पुनि आपन संदेह सुनावा
सुनि ता करि बिनती मृदु बानी परेम सहित मैं कहेउँ भवानी
मिलेहु गरुड़ मारग महँ मोही कवन भाँति समुझावौं तोही
तबहि होइ सब संसय भंगा जब बहु काल करिअ सतसंगा
सुनिअ तहाँ हरि कथा सुहाई नाना भाँति मुनिन्ह जो गाई
जेहि महुँ आदि मध्य अवसाना प्रभु प्रतिपाद्य राम भगवाना
नित हरि कथा होत जहँ भाई पठवउँ तहाँ सुनहि तुम्ह जाई
जाइहि सुनत सकल संदेहा राम चरन होइहि अति नेहा


बिनु सतसंग हरि कथा तेहि बिनु मोह भाग
मोह गएँ बिनु राम पद होइ दृढ़ अनुराग


मिलहिं रघुपति बिनु अनुरागा किएँ जोग तप ग्यान बिरागा
उत्तर दिसि सुंदर गिरि नीला तहँ रह काकभुसुंडि सुसीला
राम भगति पथ परम प्रबीना ग्यानी गुन गृह बहु कालीना
राम कथा सो कहइ निरंतर सादर सुनहिं बिबिध बिहंगबर
जाइ सुनहु तहँ हरि गुन भूरी होइहि मोह जनित दुख दूरी
मैं जब तेहि सब कहा बुझाई चलेउ हरषि मम पद सिरु नाई


ताते उमा मैं समुझावा रघुपति कृपाँ मरमु मैं पावा
होइहि कीन्ह कबहुँ अभिमाना सो खौवै चह कृपानिधाना


कछु तेहि ते पुनि मैं नहिं राखा समुझइ खग खगही कै भाषा


प्रभु माया बलवंत भवानी जाहि मोह कवन अस ग्यानी
ग्यानि भगत सिरोमनि त्रिभुवनपति कर जान
ताहि मोह माया नर पावँर करहिं गुमान
सिव बिरंचि कहुँ मोहइ को है बपुरा आन
अस जियँ जानि भजहिं मुनि माया पति भगवान

गयउ गरुड़ जहँ बसइ भुसुंडा मति अकुंठ हरि भगति अखंडा
देखि सैल प्रसन्न मन भयऊ माया मोह सोच सब गय
करि तड़ाग मज्जन जलपाना बट तर गयउ हृदयँ हरषाना
बृद्ध बृद्ध बिहंग तहँ आए सुनै राम के चरित सुहाए

कथा अरंभ करै सोइ चाहा तेही समय गयउ खगनाहा

आवत देखि सकल खगराजा हरषेउ बायस सहित समाजा
अति आदर खगपति कर कीन्हा स्वागत पूछि सुआसन दीन्हा
करि पूजा समेत अनुरागा मधुर बचन तब बोलेउ कागा

नाथ कृतारथ भयउँ मैं तव दरसन खगराज
आयसु देहु सो करौं अब प्रभु आयहु केहि काज
सदा कृतारथ रूप तुम्ह कह मृदु बचन खगेस
जेहि कै अस्तुति सादर निज मुख कीन्हि महेस

सुनहु तात जेहि कारन आयउँ 
सो सब भयउ दरस तव पायउँ

देखि परम पावन तव आश्रम गयउ मोह संसय नाना भ्रम


अब श्रीराम कथा अति पावनि सदा सुखद दुख पुंज नसावनि
सादर तात सुनावहु मोही बार बार बिनवउँ प्रभु तोही

सुनत गरुड़ कै गिरा बिनीता सरल सुप्रेम सुखद सुपुनीता
भयउ तासु मन परम उछाहा लाग कहै रघुपति गुन गाहा

प्रथमहिं अति अनुराग भवानी रामचरित सर कहेसि बखानी
पुनि नारद कर मोह अपारा कहेसि बहुरि रावन अवतारा
प्रभु अवतार कथा पुनि गाई तब सिसु चरित कहेसि मन लाई

जय सिया राम