भूप रूप गुन सील सराही। रोवहिं सोक सिंधु अवगाही
अवगाहि सोक समुद्र सोचहिं नारि नर ब्याकुल महा
दै दोष सकल सरोष बोलहिं बाम बिधि कीन्हो कहा
सुर सिद्ध तापस जोगिजन मुनि देखि दसा बिदेह की
तुलसी न समरथु कोउ जो तरि सकै सरित सनेह की
किए अमित उपदेस जहँ तहँ लोगन्ह मुनिबरन्ह
धीरजु धरिअ नरेस कहेउ बसिष्ठ बिदेह सन
तेहि कि मोह ममता निअराई यह सिय राम सनेह बड़ाई
बिषई साधक सिद्ध सयाने त्रिबिध जीव जग बेद बखाने
राम सनेह सरस मन जासू साधु सभाँ बड़ आदर तासू
सोह न राम पेम बिनु ग्यानू करनधार बिनु जिमि जलजानू
मुनि बहुबिधि बिदेहु समुझाए रामघाट सब लोग नहाए