Tuesday, August 26, 2008

नाथ भरत कछु पूँछन चहहीं

Hare Krishna 
नाथ भरत कछु पूँछन चहहीं  प्रस्न करत मन सकुचत अहहीं
तुम्ह जानहु कपि मोर सुभाऊ 
भरतहि मोहि कछु अंतर काऊ
सुनि प्रभु बचन भरत गहे चरना 
सुनहु नाथ प्रनतारति हरना

नाथ मोहि संदेह कछु सपनेहुँ सोक मोह
केवल कृपा तुम्हारिहि कृपानंद संदोह


करउँ कृपानिधि एक ढिठाई मैं सेवक तुम्ह जन सुखदाई
संतन्ह कै महिमा रघुराई बहु बिधि बेद पुरानन्ह गाई

श्रीमुख तुम्ह पुनि कीन्हि बड़ाई तिन्ह पर प्रभुहि प्रीति अधिकाई
सुना चहउँ प्रभु तिन्ह कर लच्छन कृपासिंधु गुन ग्यान बिचच्छन

संत असंत भेद बिलगाई प्रनतपाल मोहि कहहु बुझाई
संतन्ह के लच्छन सुनु भ्राता अगनित श्रुति पुरान बिख्याता

संत असंतन्हि कै असि करनी 
जिमि कुठार चंदन आचरनी
काटइ परसु मलय सुनु भाई 
निज गुन देइ सुगंध बसाई

ताते सुर सीसन्ह चढ़त जग बल्लभ श्रीखंड
अनल दाहि पीटत घनहिं परसु बदन यह दंड


बिषय अलंपट सील गुनाकर पर दुख दुख सुख सुख देखे पर
सम अभूतरिपु बिमद बिरागी लोभामरष हरष भय त्यागी
कोमलचित दीनन्ह पर दाया मन बच क्रम मम भगति अमाया
सबहि मानप्रद आपु अमानी भरत प्रान सम मम ते प्रानी
बिगत काम मम नाम परायन सांति बिरति बिनती मुदितायन
सीतलता सरलता मयत्री द्विज पद प्रीति धर्म जनयत्री
सब लच्छन बसहिं जासु उर जानेहु तात संत संतत फुर
सम दम नियम नीति नहिं डोलहिं परुष बचन कबहूँ नहिं बोलहिं

निंदा अस्तुति उभय सम ममता मम पद कंज
ते सज्जन मम प्रानप्रिय गुन मंदिर सुख पुंज


सनहु असंतन्ह केर सुभाऊ भूलेहुँ संगति करिअ काऊ
तिन्ह कर संग सदा दुखदाई जिमि कलपहि घालइ हरहाई
खलन्ह हृदयँ अति ताप बिसेषी जरहिं सदा पर संपति देखी
जहँ कहुँ निंदा सुनहिं पराई हरषहिं मनहुँ परी निधि पाई

काम क्रोध मद लोभ परायन 
निर्दय कपटी कुटिल मलायन
बयरु अकारन सब काहू सों 
जो कर हित अनहित ताहू सों

झूठइ लेना झूठइ देना झूठइ भोजन झूठ चबेना
बोलहिं मधुर बचन जिमि मोरा खाइ महा अति हृदय कठोरा

पर द्रोही पर दार रत पर धन पर अपबाद
ते नर पाँवर पापमय देह धरें मनुजाद


लोभइ ओढ़न लोभइ डासन सिस्त्रोदर पर जमपुर त्रास
काहू की जौं सुनहिं बड़ाई स्वास लेहिं जनु जूड़ी आई

जब काहू कै देखहिं बिपती 
सुखी भए मानहुँ जग नृपती

स्वारथ रत परिवार बिरोधी 
लंपट काम लोभ अति क्रोधी

मातु पिता गुर बिप्र मानहिं 
आपु गए अरु घालहिं आनहिं
करहिं मोह बस द्रोह परावा संत संग हरि कथा भावा
अवगुन सिंधु मंदमति कामी बेद बिदूषक परधन स्वामी
बिप्र द्रोह पर द्रोह बिसेषा दंभ कपट जियँ धरें सुबेषा

ऐसे अधम मनुज खल कृतजुग त्रेता नाहिं
द्वापर कछुक बृंद बहु होइहहिं कलिजुग माहिं