Wednesday, December 26, 2007

सुनत जनक आगवनु सबु हरषेउ अवध समाजु रघुनंदनहि सकोचु बड़ सोच बिबस सुरराजु

जनक दूत तेहि अवसर आए मुनि बसिष्ठँ सुनि बेगि बोलाए
करि प्रनाम तिन्ह रामु निहारे बेषु देखि भए निपट दुखारे

सुनत जनक आगवनु सबु हरषेउ अवध समाजु

रघुनंदनहि सकोचु बड़ सोच बिबस सुरराजु

गरइ गलानि कुटिल कैकेई काहि कहै केहि दूषनु देई
अस मन आनि मुदित नर नारी भयउ बहोरि रहब दिन चारी
एहि प्रकार गत बासर सोऊ प्रात नहान लाग सबु कोऊ
करि मज्जनु पूजहिं नर नारी गनप गौरि तिपुरारि तमारी
रमा रमन पद बंदि बहोरी बिनवहिं अंजुलि अंचल जोरी
राजा रामु जानकी रानी आनँद अवधि अवध रजधानी