Saturday, January 26, 2008

लछिमन गए बनहिं जब लेन मूल फल कंद

लछिमन गए बनहिं जब लेन मूल फल कंद
जनकसुता सन बोले बिहसि कृपा सुख बृंद


सुनहु प्रिया ब्रत रुचिर सुसीला
मैं कछु करबि ललित नरलीला
तुम्ह पावक महुँ करहु निवासा 
जौ लगि करौं निसाचर नासा


जबहिं राम सब कहा बखानी प्रभु पद धरि हियँ अनल समानी
निज प्रतिबिंब राखि तहँ सीतातैसइ सील रुप सुबिनीता
लछिमनहूँ यह मरमु जाना।  जो कछु चरित रचा भगवाना
दसमुख गयउ जहाँ मारीचा नाइ माथ स्वारथ रत नीचा
नवनि नीच कै अति दुखदाई जिमि अंकुस धनु उरग बिलाई
भयदायक खल कै प्रिय बानीजिमि अकाल के कुसुम भवानी
करि पूजा मारीच तब सादर पूछी बात
कवन हेतु मन ब्यग्र अति अकसर आयहु तात
दसमुख सकल कथा तेहि आगें कही सहित अभिमान अभागें
होहु कपट मृग तुम्ह छलकारी जेहि बिधि हरि आनौ नृपनारी
तेहिं पुनि कहा सुनहु दससीसा ते नररुप चराचर ईसा
तासों तात बयरु नहिं कीजे मारें मरिअ जिआएँ जीजै
मुनि मख राखन गयउ कुमारा बिनु फर सर रघुपति मोहि मारा
सत जोजन आयउँ छन माहीं तिन्ह सन बयरु किएँ भल नाहीं
भइ मम कीट भृंग की नाई जहँ तहँ मैं देखउँ दोउ भाई
जौं नर तात तदपि अति सूरा तिन्हहि बिरोधि आइहि पूरा
जेहिं ताड़का सुबाहु हति खंडेउ हर कोदंड
खर दूषन तिसिरा बधेउ मनुज कि अस बरिबंड

तब मारीच हृदयँ अनुमाना नवहि बिरोधें नहिं कल्याना
सस्त्री मर्मी प्रभु सठ धनी बैद बंदि कबि भानस गुनी
उभय भाँति देखा निज मरना तब ताकिसि रघुनायक सरना
अस जियँ जानि दसानन संगा चला राम पद प्रेम अभंगा
मन अति हरष जनाव तेही। आजु देखिहउँ परम सनेही
निज परम प्रीतम देखि लोचन सुफल करि सुख पाइहौं
श्री सहित अनुज समेत कृपानिकेत पद मन लाइहौं
निर्बान दायक क्रोध जा कर भगति अबसहि बसकरी
निज पानि सर संधानि सो मोहि बधिहि सुखसागर हरी
मम पाछें धर धावत धरें सरासन बान
फिरि फिरि प्रभुहि बिलोकिहउँ धन्य मो सम आन

तेहि बन निकट दसानन गयऊ तब मारीच कपटमृग भयऊ
तब रघुपति जानत सब कारन उठे हरषि सुर काजु सँवारन
मृग बिलोकि कटि परिकर बाँधा करतल चाप रुचिर सर साँधा
प्रभु लछिमनिहि कहा समुझाई फिरत बिपिन निसिचर बहु भाई
सीता केरि करेहु रखवारी। बुधि बिबेक बल समय बिचारी।।

निगम नेति सिव ध्यान पावा मायामृग पाछें सो धावा
कबहुँ निकट पुनि दूरि पराई कबहुँक प्रगटइ कबहुँ छपाई
प्रगटत दुरत करत छल भूरी एहि बिधि प्रभुहि गयउ लै दूरी
तब तकि राम कठिन सर मारा धरनि परेउ करि घोर पुकारा
लछिमन कर प्रथमहिं लै नामा पाछें सुमिरेसि मन महुँ रामा
प्रान तजत प्रगटेसि निज देहा सुमिरेसि रामु समेत सनेहा
अंतर प्रेम तासु पहिचाना मुनि दुर्लभ गति दीन्हि सुजाना

आरत गिरा सुनी जब सीता कह लछिमन सन परम सभीता।।
जाहु बेगि संकट अति भ्राता लछिमन बिहसि कहा सुनु माता
भृकुटि बिलास सृष्टि लय होई सपनेहुँ संकट परइ कि सोई
मरम बचन जब सीता बोला।हरि प्रेरित लछिमन मन डोला
बन दिसि देव सौंपि सब काहू चले जहाँ रावन ससि राहू
सून बीच दसकंधर देखा। आवा निकट जती कें बेषा
जाकें डर सुर असुर डेराहीं निसि नीद दिन अन्न खाहीं
सो दससीस स्वान की नाई इत उत चितइ चला भड़िहाई
कह सीता सुनु जती गोसाईं बोलेहु बचन दुष्ट की नाईं
तब रावन निज रूप देखावा भई सभय जब नाम सुनावा
कह सीता धरि धीरजु गाढ़ा आइ गयउ प्रभु रहु खल ठाढ़ा
क्रोधवंत तब रावन लीन्हिसि रथ बैठाइ।
चला गगनपथ आतुर भयँ रथ हाँकि जाइ

हा जग एक बीर रघुराया केहिं अपराध बिसारेहु दाया
आरति हरन सरन सुखदायक हा रघुकुल सरोज दिननायक
हा लछिमन तुम्हार नहिं दोसा सो फलु पायउँ कीन्हेउँ रोसा
गीधराज सुनि आरत बानी रघुकुलतिलक नारि पहिचानी
सीते पुत्रि करसि जनि त्रासा करिहउँ जातुधान कर नासा
धावा क्रोधवंत खग कैसें छूटइ पबि परबत कहुँ जैसे
रे रे दुष्ट ठाढ़ किन होही निर्भय चलेसि जानेहि मोही
तजि जानकिहि कुसल गृह जाहू नाहिं अस होइहि बहुबाहू
राम रोष पावक अति घोरा होइहि सकल सलभ कुल तोरा
चौचन्ह मारि बिदारेसि देही दंड एक भइ मुरुछा तेही
तब सक्रोध निसिचर खिसिआना काढ़ेसि परम कराल कृपाना
काटेसि पंख परा खग धरनी सुमिरि राम करि अदभुत करनी

गिरि पर बैठे कपिन्ह निहारी कहि हरि नाम दीन्ह पट डारी
एहि बिधि सीतहि सो लै गयऊ बन असोक महँ राखत भयऊ