Sunday, December 9, 2007

सहसबाहु सुरनाथु त्रिसंकू केहि न राजमद दीन्ह कलंकू भरत कीन्ह यह उचित उपाऊ रिपु रिन रंच न राखब काऊ

सुनत सुमंगल बैन मन प्रमोद तन पुलक भर
सरद सरोरुह नैन तुलसी भरे सनेह जल

बहुरि सोचबस भे सियरवनू कारन कवन भरत आगवनू
एक आइ अस कहा बहोरी सेन संग चतुरंग थोरी
सो सुनि रामहि भा अति सोचू इत पितु बच इत बंधु सकोचू
भरत सुभाउ समुझि मन माहीं प्रभु चित हित थिति पावत नाही
समाधान तब भा यह जाने भरतु कहे महुँ साधु सयाने
लखन लखेउ प्रभु हृदयँ खभारू कहत समय सम नीति बिचारू
बिनु पूँछ कछु कहउँ गोसाईं सेवकु समयँ ढीठ ढिठाई
तुम्ह सर्बग्य सिरोमनि स्वामी आपनि समुझि कहउँ अनुगामी
नाथ सुह्रद सुठि सरल चित सील सनेह निधान
सब पर प्रीति प्रतीति जियँ जानिअ आपु समान

बिषई जीव पाइ प्रभुताई मूढ़ मोह बस होहिं जनाई
भरतु नीति रत साधु सुजाना प्रभु पद प्रेम सकल जगु जाना
तेऊ आजु राम पदु पाई चले धरम मरजाद मेटाई
कुटिल कुबंध कुअवसरु ताकी। जानि राम बनवास एकाकी।।
करि कुमंत्रु मन साजि समाजू आए करै अकंटक राजू
कोटि प्रकार कलपि कुटलाई आए दल बटोरि दोउ भाई
जौं जियँ होति कपट कुचाली केहि सोहाति रथ बाजि गजाली
भरतहि दोसु देइ को जाएँ जग बौराइ राज पदु पाएँ
ससि गुर तिय गामी नघुषु चढ़ेउ भूमिसुर जान

लोक बेद तें बिमुख भा अधम बेन समान

सहसबाहु सुरनाथु त्रिसंकू केहि राजमद दीन्ह कलंकू
भरत कीन्ह यह उचित उपाऊ रिपु रिन रंच राखब काऊ
एक कीन्हि नहिं भरत भलाई निदरे रामु जानि असहाई
समुझि परिहि सोउ आजु बिसेषी समर सरोष राम मुखु पेखी
एतना कहत नीति रस भूला रन रस बिटपु पुलक मिस फूला
प्रभु पद बंदि सीस रज राखी बोले सत्य सहज बलु भाषी
अनुचित नाथ मानब मोरा भरत हमहि उपचार थोरा
कहँ लगि सहिअ रहिअ मनु मारें नाथ साथ धनु हाथ हमारें
छत्रि जाति रघुकुल जनमु राम अनुग जगु जान
लातहुँ मारें चढ़ति सिर नीच को धूरि समान

उठि कर जोरि रजायसु मागा मनहुँ बीर रस सोवत जागा
बाँधि जटा सिर कसि कटि भाथा साजि सरासनु सायकु हाथा
आजु राम सेवक जसु लेऊँ भरतहि समर सिखावन देऊँ
राम निरादर कर फलु पाई सोवहुँ समर सेज दोउ भाई
आइ बना भल सकल समाजू प्रगट करउँ रिस पाछिल आजू
जिमि करि निकर दलइ मृगराजू लेइ लपेटि लवा जिमि बाजू
तैसेहिं भरतहि सेन समेता सानुज निदरि निपातउँ खेता
जौं सहाय कर संकरु आई तौ मारउँ रन राम दोहाई