अत्रि के आश्रम जब प्रभु गयऊ सुनत महामुनि हरषित भयऊ
पुलकित गात अत्रि उठि धाए देखि रामु आतुर चलि आए
करत दंडवत मुनि उर लाए प्रेम बारि द्वौ जन अन्हवाए
देखि राम छबि नयन जुड़ाने सादर निज आश्रम तब आने
करि पूजा कहि बचन सुहाए दिए मूल फल प्रभु मन भाए
पुलकित गात अत्रि उठि धाए देखि रामु आतुर चलि आए
करत दंडवत मुनि उर लाए प्रेम बारि द्वौ जन अन्हवाए
देखि राम छबि नयन जुड़ाने सादर निज आश्रम तब आने
करि पूजा कहि बचन सुहाए दिए मूल फल प्रभु मन भाए
अनुसुइया के पद गहि सीता मिली बहोरि सुसील बिनीता
रिषिपतिनी मन सुख अधिकाई आसिष देइ निकट बैठाई
दिब्य बसन भूषन पहिराए जे नित नूतन अमल सुहाए
कह रिषिबधू सरस मृदु बानी नारिधर्म कछु ब्याज बखानी
मातु पिता भ्राता हितकारी मितप्रद सब सुनु राजकुमारी
अमित दानि भर्ता बयदेही अधम सो नारि जो सेव न तेही
धीरज धर्म मित्र अरु नारी आपद काल परिखिअहिं चारी
रिषिपतिनी मन सुख अधिकाई आसिष देइ निकट बैठाई
दिब्य बसन भूषन पहिराए जे नित नूतन अमल सुहाए
कह रिषिबधू सरस मृदु बानी नारिधर्म कछु ब्याज बखानी
मातु पिता भ्राता हितकारी मितप्रद सब सुनु राजकुमारी
अमित दानि भर्ता बयदेही अधम सो नारि जो सेव न तेही
धीरज धर्म मित्र अरु नारी आपद काल परिखिअहिं चारी
सहज अपावनि नारि पति सेवत सुभ गति लहइ
जसु गावत श्रुति चारि अजहु तुलसिका हरिहि प्रिय
सनु सीता तव नाम सुमिर नारि पतिब्रत करहि
तोहि प्रानप्रिय राम कहिउँ कथा संसार हित
कलिमल समन दमन मन राम सुजस सुखमूल
सादर सुनहि जे तिन्ह पर राम रहहिं अनुकूल
कठिन काल मल कोस धर्म न ग्यान न जोग जप
परिहरि सकल भरोस रामहि भजहिं ते चतुर नर
सादर सुनहि जे तिन्ह पर राम रहहिं अनुकूल
कठिन काल मल कोस धर्म न ग्यान न जोग जप
परिहरि सकल भरोस रामहि भजहिं ते चतुर नर
मिला असुर बिराध मग जाता आवतहीं रघुवीर निपाता
पुनि आए जहँ मुनि सरभंगा। सुंदर अनुज जानकी संगा
देखी राम मुख पंकज मुनिबर लोचन भृंग।
सादर पान करत अति धन्य जन्म सरभंग
कह मुनि सुनु रघुबीर कृपाला संकर मानस राजमराला
जात रहेउँ बिरंचि के धामा सुनेउँ श्रवन बन ऐहहिं रामा
चितवत पंथ रहेउँ दिन राती अब प्रभु देखि जुड़ानी छाती
नाथ सकल साधन मैं हीना कीन्ही कृपा जानि जन दीना
सो कछु देव न मोहि निहोरा निज पन राखेउ जन मन चोरा
तब लगि रहहु दीन हित लागी जब लगि मिलौं तुम्हहि तनु त्यागी
जोग जग्य जप तप ब्रत कीन्हा प्रभु कहँ देइ भगति बर लीन्हा
एहि बिधि सर रचि मुनि सरभंगा बैठे हृदयँ छाड़ि सब संगा
सीता अनुज समेत प्रभु नील जलद तनु स्याम
मम हियँ बसहु निरंतर सगुनरुप श्रीराम
अस कहि जोग अगिनि तनु जारा राम कृपाँ बैकुंठ सिधारा
ताते मुनि हरि लीन न भयऊ प्रथमहिं भेद भगति बर लयऊ
रिषि निकाय मुनिबर गति देखि सुखी भए निज हृदयँ बिसेषी
देखी राम मुख पंकज मुनिबर लोचन भृंग।
सादर पान करत अति धन्य जन्म सरभंग
कह मुनि सुनु रघुबीर कृपाला संकर मानस राजमराला
जात रहेउँ बिरंचि के धामा सुनेउँ श्रवन बन ऐहहिं रामा
चितवत पंथ रहेउँ दिन राती अब प्रभु देखि जुड़ानी छाती
नाथ सकल साधन मैं हीना कीन्ही कृपा जानि जन दीना
सो कछु देव न मोहि निहोरा निज पन राखेउ जन मन चोरा
तब लगि रहहु दीन हित लागी जब लगि मिलौं तुम्हहि तनु त्यागी
जोग जग्य जप तप ब्रत कीन्हा प्रभु कहँ देइ भगति बर लीन्हा
एहि बिधि सर रचि मुनि सरभंगा बैठे हृदयँ छाड़ि सब संगा
सीता अनुज समेत प्रभु नील जलद तनु स्याम
मम हियँ बसहु निरंतर सगुनरुप श्रीराम
अस कहि जोग अगिनि तनु जारा राम कृपाँ बैकुंठ सिधारा
ताते मुनि हरि लीन न भयऊ प्रथमहिं भेद भगति बर लयऊ
रिषि निकाय मुनिबर गति देखि सुखी भए निज हृदयँ बिसेषी