जहँ जप जग्य मुनि करहीं अति मारीच सुबाहुहि डरहीं
देखत जग्य निसाचर धावहिं करहि उपद्रव मुनि दुख पावहिं
देखत जग्य निसाचर धावहिं करहि उपद्रव मुनि दुख पावहिं
तब मुनिवर मन कीन्ह बिचारा प्रभु अवतरेउ हरन महि भारा
करि मज्जन सरऊ जल गए भूप दरबार
असुर समूह सतावहिं मोही मै जाचन आयउँ नृप तोही
अनुज समेत देहु रघुनाथा निसिचर बध मैं होब सनाथा
अनुज समेत देहु रघुनाथा निसिचर बध मैं होब सनाथा
मागहु भूमि धेनु धन कोसा सर्बस देउँ आजु सहरोसा
देह प्रान तें प्रिय कछु नाहीं सोउ मुनि देउँ निमिष एक माहीं
देह प्रान तें प्रिय कछु नाहीं सोउ मुनि देउँ निमिष एक माहीं
तब बसिष्ट बहुबिधि समुझावा नृप संदेह नास कहँ पावा
सौंपे भूप रिषिहि सुत बहु बिधि देइ असीस
जननी भवन गए प्रभु चले नाइ पद सीस
जननी भवन गए प्रभु चले नाइ पद सीस