Monday, May 28, 2007

अनुज समेत देहु रघुनाथा निसिचर बध मैं होब सनाथा

बिस्वामित्र महामुनि ग्यानी सहिं बिपिन सुभ आश्रम जानी

जहँ जप जग्य मुनि करहीं अति मारीच सुबाहुहि डरहीं
देखत जग्य निसाचर धावहिं करहि उपद्रव मुनि दुख पावहिं

तब मुनिवर मन कीन्ह बिचारा प्रभु अवतरेउ हरन महि भारा

करि मज्जन सरऊ जल गए भूप दरबार

असुर समूह सतावहिं मोही मै जाचन आयउँ नृप तोही
अनुज समेत देहु रघुनाथा निसिचर बध मैं होब सनाथा

मागहु भूमि धेनु धन कोसा सर्बस देउँ आजु सहरोसा
देह प्रान तें प्रिय कछु नाहीं सोउ मुनि देउँ निमिष एक माहीं

तब बसिष्ट बहुबिधि समुझावा नृप संदेह नास कहँ पावा

सौंपे भूप रिषिहि सुत बहु बिधि देइ असीस
जननी भवन गए प्रभु चले नाइ पद सीस