Friday, September 28, 2007

प्रान कंठगत भयउ भुआलू मनि बिहीन जनु ब्याकुल ब्यालू

सचिव आगमनु सुनत सबु बिकल भयउ रनिवासु
भवन भयंकरु लाग तेहि मानहुँ प्रेत निवासु

देखि सचिवँ जय जीव कहि कीन्हेउ दंड प्रनामु
सुनत उठेउ ब्याकुल नृपति कहु सुमंत्र कहँ रामु

सखा रामु सिय लखनु जहँ तहाँ मोहि पहुँचाउ
नाहिं चाहत चलन अब प्रान कहउँ सतिभाउ

प्रथम बासु तमसा भयउ दूसर सुरसरि तीर
न्हाई रहे जलपानु करि सिय समेत दोउ बीर

लखन कहे कछु बचन कठोरा बरजि राम पुनि मोहि निहोरा
बार बार निज सपथ देवाई कहबि तात लखन लरिकाई

सुत बचन सुनतहिं नरनाहू परेउ धरनि उर दारुन दाहू
तलफत बिषम मोह मन मापा माजा मनहुँ मीन कहुँ ब्यापा
करि बिलाप सब रोवहिं रानी महा बिपति किमि जाइ बखानी
सुनि बिलाप दुखहू दुखु लागा धीरजहू कर धीरजु भागा

भयउ कोलाहलु अवध अति सुनि नृप राउर सोरु
बिपुल बिहग बन परेउ निसि मानहुँ कुलिस कठोरु

प्रान कंठगत भयउ भुआलू मनि बिहीन जनु ब्याकुल ब्यालू
इद्रीं सकल बिकल भइँ भारी जनु सर सरसिज बनु बिनु बारी
कौसल्याँ नृपु दीख मलाना रबिकुल रबि अँथयउ जियँ जाना
उर धरि धीर राम महतारी बोली बचन समय अनुसारी


धीरजु धरिअ पाइअ पारू नाहिं बूड़िहि सबु परिवारू
जौं जियँ धरिअ बिनय पिय मोरी रामु लखनु सिय मिलहिं बहोरी