भवन भयंकरु लाग तेहि मानहुँ प्रेत निवासु
देखि सचिवँ जय जीव कहि कीन्हेउ दंड प्रनामु
सुनत उठेउ ब्याकुल नृपति कहु सुमंत्र कहँ रामु
सुनत उठेउ ब्याकुल नृपति कहु सुमंत्र कहँ रामु
सखा रामु सिय लखनु जहँ तहाँ मोहि पहुँचाउ
नाहिं त चाहत चलन अब प्रान कहउँ सतिभाउ
नाहिं त चाहत चलन अब प्रान कहउँ सतिभाउ
प्रथम बासु तमसा भयउ दूसर सुरसरि तीर
न्हाई रहे जलपानु करि सिय समेत दोउ बीर
न्हाई रहे जलपानु करि सिय समेत दोउ बीर
लखन कहे कछु बचन कठोरा बरजि राम पुनि मोहि निहोरा
बार बार निज सपथ देवाई कहबि न तात लखन लरिकाई
बार बार निज सपथ देवाई कहबि न तात लखन लरिकाई
सुत बचन सुनतहिं नरनाहू परेउ धरनि उर दारुन दाहू
तलफत बिषम मोह मन मापा माजा मनहुँ मीन कहुँ ब्यापा
करि बिलाप सब रोवहिं रानी महा बिपति किमि जाइ बखानी
सुनि बिलाप दुखहू दुखु लागा धीरजहू कर धीरजु भागा
तलफत बिषम मोह मन मापा माजा मनहुँ मीन कहुँ ब्यापा
करि बिलाप सब रोवहिं रानी महा बिपति किमि जाइ बखानी
सुनि बिलाप दुखहू दुखु लागा धीरजहू कर धीरजु भागा
भयउ कोलाहलु अवध अति सुनि नृप राउर सोरु
बिपुल बिहग बन परेउ निसि मानहुँ कुलिस कठोरु
बिपुल बिहग बन परेउ निसि मानहुँ कुलिस कठोरु
प्रान कंठगत भयउ भुआलू मनि बिहीन जनु ब्याकुल ब्यालू
इद्रीं सकल बिकल भइँ भारी जनु सर सरसिज बनु बिनु बारी
कौसल्याँ नृपु दीख मलाना रबिकुल रबि अँथयउ जियँ जाना
उर धरि धीर राम महतारी बोली बचन समय अनुसारी
इद्रीं सकल बिकल भइँ भारी जनु सर सरसिज बनु बिनु बारी
कौसल्याँ नृपु दीख मलाना रबिकुल रबि अँथयउ जियँ जाना
उर धरि धीर राम महतारी बोली बचन समय अनुसारी
धीरजु धरिअ त पाइअ पारू नाहिं त बूड़िहि सबु परिवारू
जौं जियँ धरिअ बिनय पिय मोरी रामु लखनु सिय मिलहिं बहोरी
जौं जियँ धरिअ बिनय पिय मोरी रामु लखनु सिय मिलहिं बहोरी