Monday, January 7, 2008

राम सत्यब्रत धरम रत सब कर सीलु सनेहु संकट सहत सकोच बस कहिअ जो आयसु देहु

परमारथ स्वारथ सुख सारे भरत सपनेहुँ मनहुँ निहारे
साधन सिद्ध राम पग नेहू मोहि लखि परत भरत मत एहू
भोरेहुँ भरत पेलिहहिं मनसहुँ राम रजाइ
करिअ सोचु सनेह बस कहेउ भूप बिलखाइ


प्रान प्रान के जीव के जिव सुख के सुख राम
तुम्ह तजि तात सोहात गृह जिन्हहि तिन्हहिं बिधि बाम

सो सुखु करमु धरमु जरि जाऊ जहँ राम पद पंकज भाऊ
जोगु कुजोगु ग्यानु अग्यानू। जहँ नहिं राम पेम परधानू
तुम्ह बिनु दुखी सुखी तुम्ह तेहीं तुम्ह जानहु जिय जो जेहि केहीं
राउर आयसु सिर सबही कें बिदित कृपालहि गति सब नीकें
आपु आश्रमहि धारिअ पाऊ भयउ सनेह सिथिल मुनिराऊ
करि प्रनाम तब रामु सिधाए रिषि धरि धीर जनक पहिं आए
राम बचन गुरु नृपहि सुनाए सील सनेह सुभायँ सुहाए


राम सत्यब्रत धरम रत सब कर सीलु सनेहु
संकट सहत सकोच बस कहिअ जो आयसु देहु


राखि राम रुख धरमु ब्रतु पराधीन मोहि जानि
सब कें संमत सर्ब हित करिअ पेमु पहिचानि


रामु सनेह सकोच बस कह ससोच सुरराज
रचहु प्रपंचहि पंच मिलि नाहिं भयउ अकाजु