Saturday, May 31, 2008

तुरत भयउँ मैं काग तब पुनि मुनि पद सिरु नाइ

प्रेरित काल बिधि गिरि जाइ भयउँ मैं ब्याल

पुनि प्रयास बिनु सो तनु जजेउँ गएँ कछु काल
जोइ तनु धरउँ तजउँ पुनि अनायास हरिजान
जिमि नूतन पट पहिरइ नर परिहरइ पुरान
सिवँ राखी श्रुति नीति अरु मैं नहिं पावा क्लेस
एहि बिधि धरेउँ बिबिध तनु ग्यान गयउ खगेस


त्रिजग देव नर जोइ तनु धरउँ तहँ तहँ राम भजन अनुसरऊँ
एक सूल मोहि बिसर काऊ गुर कर कोमल सील सुभाऊ



चरम देह द्विज कै मैं पाई सुर दुर्लभ पुरान श्रुति गाई


खेलउँ तहूँ बालकन्ह मीला करउँ सकल रघुनायक लीला
प्रौढ़ भएँ मोहि पिता पढ़ावा समझउँ सुनउँ गुनउँ नहिं भावा
मन ते सकल बासना भागी केवल राम चरन लय लागी
कहु खगेस अस कवन अभागी खरी सेव सुरधेनुहि त्यागी
प्रेम मगन मोहि कछु सोहाई हारेउ पिता पढ़ाइ पढ़ाई


भए कालबस जब पितु माता मैं बन गयउँ भजन जनत्राता


जहँ जहँ बिपिन मुनीस्वर पावउँ आश्रम जाइ जाइ सिरु नावउँ
बूझत तिन्हहि राम गुन गाहा कहहिं सुनउँ हरषित खगनाहा
सुनत फिरउँ हरि गुन अनुबादा अब्याहत गति संभु प्रसाद
छूटी त्रिबिध ईषना गाढ़ी एक लालसा उर अति बाढ़ी
राम चरन बारिज जब देखौं तब निज जन्म सफल करि लेखौं


जेहि पूँछउँ सोइ मुनि अस कहई ईस्वर सर्ब भूतमय अहई


निर्गुन मत नहिं मोहि सोहाई सगुन ब्रह्म रति उर अधिकाई


गुर के बचन सुरति करि राम चरन मनु लाग
रघुपति जस गावत फिरउँ छन छन नव अनुराग
मेरु सिखर बट छायाँ मुनि लोमस आसीन
देखि चरन सिरु नायउँ बचन कहेउँ अति दीन
सुनि मम बचन बिनीत मृदु मुनि कृपाल खगराज
मोहि सादर पूँछत भए द्विज आयहु केहि काज
तब मैं कहा कृपानिधि तुम्ह सर्बग्य सुजान
सगुन ब्रह्म अवराधन मोहि कहहु भगवान

तब मुनिष रघुपति गुन गाथा कहे कछुक सादर खगनाथा
ब्रह्मग्यान रत मुनि बिग्यानि मोहि परम अधिकारी जानी
लागे करन ब्रह्म उपदेसा अज अद्वेत अगुन हृदयेसा
अकल अनीह अनाम अरुपा अनुभव गम्य अखंड अनूपा
मन गोतीत अमल अबिनासी निर्बिकार निरवधि सुख रासी
सो तैं ताहि तोहि नहिं भेदा बारि बीचि इव गावहि बेदा
बिबिध भाँति मोहि मुनि समुझावा निर्गुन मत मम हृदयँ आवा
पुनि मैं कहेउँ नाइ पद सीसा सगुन उपासन कहहु मुनीसा
राम भगति जल मम मन मीना किमि बिलगाइ मुनीस प्रबीना
सोइ उपदेस कहहु करि दाया निज नयनन्हि देखौं रघुराया
भरि लोचन बिलोकि अवधेसा तब सुनिहउँ निर्गुन उपदेसा
मुनि पुनि कहि हरिकथा अनूपा खंडि सगुन मत अगुन निरूपा
तब मैं निर्गुन मत कर दूरी सगुन निरूपउँ करि हठ भूरी
उत्तर प्रतिउत्तर मैं कीन्हा मुनि तन भए क्रोध के चीन्हा


सुनु प्रभु बहुत अवग्या किएँ उपज क्रोध ग्यानिन्ह के हिएँ


अति संघरषन जौं कर कोई अनल प्रगट चंदन ते होई
बारंबार सकोप मुनि करइ निरुपन ग्यान
मैं अपनें मन बैठ तब करउँ बिबिध अनुमान
क्रोध कि द्वेतबुद्धि बिनु द्वैत कि बिनु अग्यान
मायाबस परिछिन्न जड़ जीव कि ईस समान


कबहुँ कि दुख सब कर हित ताकें तेहि कि दरिद्र परस मनि जाकें
परद्रोही की होहिं निसंका कामी पुनि कि रहहिं अकलंका
बंस कि रह द्विज अनहित कीन्हें कर्म कि होहिं स्वरूपहि चीन्हें
काहू सुमति कि खल सँग जामी सुभ गति पाव कि परत्रिय गामी
भव कि परहिं परमात्मा बिंदक सुखी कि होहिं कबहुँ हरिनिंदक
राजु कि रहइ नीति बिनु जानें अघ कि रहहिं हरिचरित बखानें
पावन जस कि पुन्य बिनु होई बिनु अघ अजस कि पावइ कोई
लाभु कि किछु हरि भगति समाना जेहि गावहिं श्रुति संत पुराना
हानि कि जग एहि सम किछु भाई भजिअ रामहि नर तनु पाई
अघ कि पिसुनता सम कछु आना धर्म कि दया सरिस हरिजाना


एहि बिधि अमिति जुगुति मन गुनऊँ मुनि उपदेस सादर सुनऊँ


पुनि पुनि सगुन पच्छ मैं रोपा 

तब मुनि बोलेउ बचन सकोपा


मूढ़ परम सिख देउँ मानसि 

उत्तर प्रतिउत्तर बहु आनसि
सत्य बचन बिस्वास करही

बायस इव सबही ते डरही
सठ स्वपच्छ तब हृदयँ बिसाला 

सपदि होहि पच्छी चंडाला
लीन्ह श्राप मैं सीस चढ़ाई नहिं 

कछु भय दीनता आई


तुरत भयउँ मैं काग तब पुनि मुनि पद सिरु नाइ


सुमिरि राम रघुबंस मनि हरषित चलेउँ उड़ाइ


उमा जे राम चरन रत बिगत काम मद क्रोध
निज प्रभुमय देखहिं जगत केहि सन करहिं बिरोध

सुनु खगेस नहिं कछु रिषि दूषन उर प्रेरक रघुबंस बिभूषन
कृपासिंधु मुनि मति करि भोरी लीन्हि प्रेम परिच्छा मोरी
मन बच क्रम मोहि निज जन जाना मुनि मति पुनि फेरी भगवाना
रिषि मम महत सीलता देखी राम चरन बिस्वास बिसेषी
अति बिसमय पुनि पुनि पछिताई सादर मुनि मोहि लीन्ह बोलाई
मम परितोष बिबिध बिधि कीन्हा हरषित राममंत्र तब दीन्हा
बालकरूप राम कर ध्याना कहेउ मोहि मुनि कृपानिधाना
सुंदर सुखद मिहि अति भावा सो प्रथमहिं मैं तुम्हहि सुनावा
मुनि मोहि कछुक काल तहँ राखा रामचरितमानस तब भाषा
सादर मोहि यह कथा सुनाई पुनि बोले मुनि गिरा सुहाई
रामचरित सर गुप्त सुहावा संभु प्रसाद तात मैं पावा
तोहि निज भगत राम कर जानी ताते मैं सब कहेउँ बखानी
राम भगति जिन्ह कें उर नाहीं कबहुँ तात कहिअ तिन्ह पाहीं
मुनि मोहि बिबिध भाँति समुझावा मैं सप्रेम मुनि पद सिरु नावा
निज कर कमल परसि मम सीसा हरषित आसिष दीन्ह मुनीसा
राम भगति अबिरल उर तोरें बसिहि सदा प्रसाद अब मोरें
सदा राम प्रिय होहु तुम्ह सुभ गुन भवन अमान
कामरूप इच्धामरन ग्यान बिराग निधान
जेंहिं आश्रम तुम्ह बसब पुनि सुमिरत श्रीभगवंत
ब्यापिहि तहँ अबिद्या जोजन एक प्रजंत

काल कर्म गुन दोष सुभाऊ कछु दुख तुम्हहि ब्यापिहि काऊ
राम रहस्य ललित बिधि नाना गुप्त प्रगट इतिहास पुराना
बिनु श्रम तुम्ह जानब सब सोऊ नित नव नेह राम पद होऊ
जो इच्छा करिहहु मन माहीं हरि प्रसाद कछु दुर्लभ नाहीं
सुनि मुनि आसिष सुनु मतिधीरा ब्रह्मगिरा भइ गगन गँभीरा
एवमस्तु तव बच मुनि ग्यानी यह मम भगत कर्म मन बानी
सुनि नभगिरा हरष मोहि भयऊ प्रेम मगन सब संसय गयऊ
करि बिनती मुनि आयसु पाई पद सरोज पुनि पुनि सिरु नाई
हरष सहित एहिं आश्रम आयउँ प्रभु प्रसाद दुर्लभ बर पायउँ
इहाँ बसत मोहि सुनु खग ईसा बीते कलप सात अरु बीसा
करउँ सदा रघुपति गुन गाना सादर सुनहिं बिहंग सुजाना
जब जब अवधपुरीं रघुबीरा धरहिं भगत हित मनुज सरीरा
तब तब जाइ राम पुर रहऊँ सिसुलीला बिलोकि सुख लहऊँ
पुनि उर राखि राम सिसुरूपा निज आश्रम आवउँ खगभूपा
कथा सकल मैं तुम्हहि सुनाई काग देह जेहिं कारन पाई
कहिउँ तात सब प्रस्न तुम्हारी राम भगति महिमा अति भारी


ताते यह तन मोहि प्रिय भयउ राम पद नेह


निज प्रभु दरसन पायउँ गए सकल संदेह


भगति पच्छ हठ करि रहेउँ दीन्हि महारिषि साप


मुनि दुर्लभ बर पायउँ देखहु भजन प्रताप









परमानंद कृपायतन मन परिपूरन काम
प्रेम भगति अनपायनी देहु हमहि श्रीराम