Monday, July 30, 2007

तब प्रभु भरद्वाज पहिं आए करत दंडवत मुनि उर लाए

तब प्रभु भरद्वाज पहिं आए करत दंडवत मुनि उर लाए
मुनि मन मोद कछु कहि जाइ। ब्रह्मानंद रासि जनु पाई

दीन्हि असीस मुनीस उर अति अनंदु अस जानि।
लोचन गोचर सुकृत फल मनहुँ किए बिधि आनि

कुसल प्रस्न करि आसन दीन्हे पूजि प्रेम परिपूरन कीन्हे
कंद मूल फल अंकुर नीके दिए आनि मुनि मनहुँ अमी के
सीय लखन जन सहित सुहाए अति रुचि राम मूल फल खाए
भए बिगतश्रम रामु सुखारे भरव्दाज मृदु बचन उचारे
आजु सुफल तपु तीरथ त्यागू आजु सुफल जप जोग बिरागू
सफल सकल सुभ साधन साजू राम तुम्हहि अवलोकत आजू
लाभ अवधि सुख अवधि दूजी तुम्हारें दरस आस सब पूजी
अब करि कृपा देहु बर एहू निज पद सरसिज सहज सनेहू


सुनि मुनि बचन रामु सकुचाने भाव भगति आनंद अघाने
तब रघुबर मुनि सुजसु सुहावा कोटि भाँति कहि सबहि सुनावा
सो बड सो सब गुन गन गेहू जेहि मुनीस तुम्ह आदर देहू
मुनि रघुबीर परसपर नवहीं बचन अगोचर सुखु अनुभवहीं
यह सुधि पाइ प्रयाग निवासी बटु तापस मुनि सिद्ध उदासी
भरद्वाज आश्रम सब आए देखन दसरथ सुअन सुहाए
राम प्रनाम कीन्ह सब काहू मुदित भए लहि लोयन लाहू
देहिं असीस परम सुखु पाई फिरे सराहत सुंदरताई

राम कीन्ह बिश्राम निसि प्रात प्रयाग नहाइ
चले सहित सिय लखन जन मुददित मुनिहि सिरु नाइ


साथ लागि मुनि सिष्य बोलाए सुनि मन मुदित पचासक आए
सबन्हि राम पर प्रेम अपारा सकल कहहि मगु दीख हमारा
मुनि बटु चारि संग तब दीन्हे जिन्ह बहु जनम सुकृत सब कीन्हे
करि प्रनामु रिषि आयसु पाई प्रमुदित हृदयँ चले रघुराई
ग्राम निकट जब निकसहि जाई देखहि दरसु नारि नर धाई
होहि सनाथ जनम फलु पाई फिरहि दुखित मनु संग पठाई