Wednesday, January 23, 2008

एक बार चुनि कुसुम सुहाए

एक बार चुनि कुसुम सुहाए निज कर भूषन राम बनाए
सीतहि पहिराए प्रभु सादर बैठे फटिक सिला पर सुंदर
सुरपति सुत धरि बायस बेषा सठ चाहत रघुपति बल देखा
जिमि पिपीलिका सागर थाहा महा मंदमति पावन चाहा
सीता चरन चौंच हति भागा मूढ़ मंदमति कारन कागा
चला रुधिर रघुनायक जाना सींक धनुष सायक संधाना


अति कृपाल रघुनायक सदा दीन पर नेह
ता सन आइ कीन्ह छलु मूरख अवगुन गेह


प्रेरित मंत्र ब्रह्मसर धावा चला भाजि बायस भय पावा
धरि निज रुप गयउ पितु पाहीं राम बिमुख राखा तेहि नाहीं
भा निरास उपजी मन त्रासा जथा चक्र भय रिषि दुर्बासा
ब्रह्मधाम सिवपुर सब लोका फिरा श्रमित ब्याकुल भय सोका
काहूँ बैठन कहा ओही राखि को सकइ राम कर द्रोही


मातु मृत्यु पितु समन समाना सुधा होइ बिष सुनु हरिजाना
मित्र करइ सत रिपु कै करनी ता कहँ बिबुधनदी बैतरनी

सब जगु ताहि अनलहु ते ताता जो रघुबीर बिमुख सुनु भ्राता
नारद देखा बिकल जयंता लागि दया कोमल चित संता
पठवा तुरत राम पहिं ताही कहेसि पुकारि प्रनत हित पाही
आतुर सभय गहेसि पद जाई। त्राहि त्राहि दयाल रघुराई।।
अतुलित बल अतुलित प्रभुताई मैं मतिमंद जानि नहिं पाई
निज कृत कर्म जनित फल पायउँ।अब प्रभु पाहि सरन तकि आयउँ
सुनि कृपाल अति आरत बानी एकनयन करि तजा भवानी
कीन्ह मोह बस द्रोह जद्यपि तेहि कर बध उचित
प्रभु छाड़ेउ करि छोह को कृपाल रघुबीर सम