जौं अहि सेज सयन हरि करहीं बुध कछु तिन्ह कर दोषु न धरहीं
भानु कृसानु सर्ब रस खाहीं तिन्ह कहँ मंद कहत कोउ नाहीं
समरथ कहुँ नहिं दोषु गोसाई रबि पावक सुरसरि की नाईं
जौं अस हिसिषा करहिं नर जड़ि बिबेक अभिमान
परहिं कलप भरि नरक महुँ जीव कि ईस समान
सुरसरि जल कृत बारुनि जाना कबहुँ न संत करहिं तेहि पाना
सुरसरि मिलें सो पावन जैसें ईस अनीसहि अंतरु तैसें