Monday, May 28, 2007

समरथ कहुँ नहिं दोषु गोसाई रबि पावक सुरसरि की नाईं

जौं अहि सेज सयन हरि करहीं बुध कछु तिन्ह कर दोषु धरहीं
भानु कृसानु सर्ब रस खाहीं तिन्ह कहँ मंद कहत कोउ नाहीं

सुभ अरु असुभ सलिल सब बहई सुरसरि कोउ अपुनीत कहई
समरथ कहुँ नहिं दोषु गोसाई रबि पावक सुरसरि की नाईं
जौं अस हिसिषा करहिं नर जड़ि बिबेक अभिमान
परहिं कलप भरि नरक महुँ जीव कि ईस समान

सुरसरि जल कृत बारुनि जाना कबहुँ संत करहिं तेहि पाना
सुरसरि मिलें सो पावन जैसें ईस अनीसहि अंतरु तैसें