ब्रह्मसृष्टि जहँ लगि तनुधारी दसमुख बसबर्ती नर नारी
आयसु करहिं सकल भयभीता नवहिं आइ नित चरन बिनीता
भुजबल बिस्व बस्य करि राखेसि कोउ न सुतंत्र
मंडलीक मनि रावन राज करइ निज मंत्र
देव जच्छ गंधर्व नर किंनर नाग कुमारि
जीति बरीं निज बाहुबल बहु सुंदर बर नारि
सुभ आचरन कतहुँ नहिं होई देव बिप्र गुरू मान न कोई
नहिं हरिभगति जग्य तप ग्याना सपनेहुँ सुनिअ न बेद पुराना
बरनि न जाइ अनीति घोर निसाचर जो करहिं
हिंसा पर अति प्रीति तिन्ह के पापहि कवनि मिति
मानहिं मातु पिता नहिं देवा साधुन्ह सन करवावहिं सेवा
जिन्ह के यह आचरन भवानी ते जानेहु निसिचर सब प्रानी
अतिसय देखि धर्म कै ग्लानी परम सभीत धरा अकुलानी
तेहि समाज गिरिजा मैं रहेऊँ अवसर पाइ बचन एक कहेऊँ
हरि ब्यापक सर्बत्र समाना प्रेम तें प्रगट होहिं मैं जान
देस काल दिसि बिदिसिहु माहीं कहहु सो कहाँ जहाँ प्रभु नाहीं
जानि सभय सुरभूमि सुनि बचन समेत सनेह
गगनगिरा गंभीर भइ हरनि सोक संदेह
जनि डरपहु मुनि सिद्ध सुरेसा तुम्हहि लागि धरिहउँ नर बेसा
अंसन्ह सहित मनुज अवतारा लेहउँ दिनकर बंस उदारा
कस्यप अदिति महातप कीन्हा तिन्ह कहुँ मैं पूरब बर दीन्हा
ते दसरथ कौसल्या रूपा कोसलपुरीं प्रगट नरभूपा
तिन्ह के गृह अवतरिहउँ जाई रघुकुल तिलक सो चारिउ भाई
नारद बचन सत्य सब करिहउँ परम सक्ति समेत अवतरिहउँ
हरिहउँ सकल भूमि गरुआई निर्भय होहु देव समुदाई
गगन ब्रह्मबानी सुनी काना तुरत फिरे सुर हृदय जुड़ाना
तब ब्रह्मा धरनिहि समुझावा अभय भई भरोस जियँ आवा
निज लोकहि बिरंचि गे देवन्ह इहइ सिखाइ
बानर तनु धरि धरि महि हरि पद सेवहु जाइ
एक बार भूपति मन माहीं भै गलानि मोरें सुत नाहीं
सृंगी रिषिहि बसिष्ठ बोलावा पुत्रकाम सुभ जग्य करावा
जोग लगन ग्रह बार तिथि सकल भए अनुकूल
चर अरु अचर हर्षजुत राम जनम सुखमूल
नौमी तिथि मधु मास पुनीता सुकल पच्छ अभिजित हरिप्रीता
मध्यदिवस अति सीत न घामा पावन काल लोक बिश्रामा
सुर समूह बिनती करि पहुँचे निज निज धाम
जगनिवास प्रभु प्रगटे अखिल लोक बिश्राम