Saturday, May 26, 2007

तुलसी जसि भवतब्यता तैसी मिलइ सहाइ आपुनु आवइ ताहि पहिं ताहि तहाँ लै जाइ

तुलसी जसि भवतब्यता तैसी मिलइ सहाइ
आपुनु आवइ ताहि पहिं ताहि तहाँ लै जाइ




तुलसी देखि सुबेषु भूलहिं मूढ़ चतुर नर
सुंदर केकिहि पेखु बचन सुधा सम असन अहि



कृपासिंधु मुनि दरसन तोरें चारि पदारथ करतल मोरे
प्रभुहि तथापि प्रसन्न बिलोकी मागि अगम बर होउँ असोकी
जरा मरन दुख रहित तनु समर जितै जनि कोउ
एकछत्र रिपुहीन महि राज कलप सत होउ

कह तापस नृप ऐसेइ होऊ कारन एक कठिन सुनु सोऊ
कालउ तुअ पद नाइहि सीसा एक बिप्रकुल छाड़ि महीसा
तपबल बिप्र सदा बरिआरा तिन्ह के कोप कोउ रखवारा
जौं बिप्रन्ह बस करहु नरेसा तौ तुअ बस बिधि बिष्नु महेसा
चल ब्रह्मकुल सन बरिआई सत्य कहउँ दोउ भुजा उठाई
बिप्र श्राप बिनु सुनु महिपाला तोर नास नहि कवनेहुँ काला
हरषेउ राउ बचन सुनि तासू नाथ होइ मोर अब नासू
तव प्रसाद प्रभु कृपानिधाना मो कहुँ सर्ब काल कल्याना
एवमस्तु कहि कपटमुनि बोला कुटिल बहोरि
मिलब हमार भुलाब निज कहहु हमहि खोरि

एकहिं डर डरपत मन मोरा
प्रभु महिदेव श्राप अति घोरा

होहिं बिप्र बस कवन बिधि कहहु कृपा करि सोउ
तुम्ह तजि दीनदयाल निज हितू देखउँ कोउ


बोले बिप्र सकोप तब नहिं कछु कीन्ह बिचार
जाइ निसाचर होहु नृप मूढ़ सहित परिवार

छत्रबंधु तैं बिप्र बोलाई घालै लिए सहित समुदाई
ईस्वर राखा धरम हमारा जैहसि तैं समेत परिवारा
संबत मध्य नास तव होऊ जलदाता रहिहि कुल कोऊ



भूपति भावी मिटइ नहिं जदपि दूषन तोर
किएँ अन्यथा होइ नहिं बिप्रश्राप अति घोर


भरद्वाज सुनु जाहि जब होइ बिधाता बाम
धूरि मेरुसम जनक जम ताहि ब्यालसम दाम




काल पाइ मुनि सुनु सोइ राजा 
भयउ निसाचर सहित समाजा
दस सिर ताहि बीस भुजदंडा 
रावन नाम बीर बरिबंडा
भूप अनुज अरिमर्दन नामा 
भयउ सो कुंभकरन बलधामा
सचिव जो रहा धरमरुचि जासू 
भयउ बिमात्र बंधु लघु तासू
नाम बिभीषन जेहि जग जाना 
बिष्नुभगत बिग्यान निधान