एक कलप एहि बिधि अवतारा चरित्र पवित्र किए संसारा
एक कलप सुर देखि दुखारे समर जलंधर सन सब हारे
संभु कीन्ह संग्राम अपारा दनुज महाबल मरइ न मारा
परम सती असुराधिप नारी तेहिं बल ताहि न जितहिं पुरारी
छल करि टारेउ तासु ब्रत प्रभु सुर कारज कीन्ह
जब तेहि जानेउ मरम तब श्राप कोप करि दीन्ह
तासु श्राप हरि दीन्ह प्रमाना कौतुकनिधि कृपाल भगवाना
तहाँ जलंधर रावन भयऊ रन हति राम परम पद दयऊ
एक जनम कर कारन एहा जेहि लागि राम धरी नरदेह
प्रति अवतार कथा प्रभु केरी सुनु मुनि बरनी कबिन्ह घनेरी
नारद श्राप दीन्ह एक बारा कलप एक तेहि लगि अवतार
गिरिजा चकित भई सुनि बानी नारद बिष्नुभगत पुनि ग्यानि
पर संपदा सकहु नहिं देखी तुम्हरें इरिषा कपट बिसेषी
मथत सिंधु रुद्रहि बौरायहु सुरन्ह प्रेरी बिष पान करायहु
स्वारथ साधक कुटिल तुम्ह सदा कपट ब्यवहारु
परम स्वतंत्र न सिर पर कोई भावइ मनहि करहु तुम्ह सो
भलेहि मंद मंदेहि भल करहू बिसमय हरष न हियँ कछु धरहू
डहकि डहकि परिचेहु सब काहू अति असंक मन सदा उछाहू
करम सुभासुभ तुम्हहि न बाधा अब लगि तुम्हहि न काहूँ साधा
भले भवन अब बायन दीन्हा पावहुगे फल आपन कीन्हा
बंचेहु मोहि जवनि धरि देहा सोइ तनु धरहु श्राप मम एहा
कपि आकृति तुम्ह कीन्हि हमारी करिहहिं कीस सहाय तुम्हारी
मम अपकार कीन्ह तुम्ह भारीनारी बिरहँ तुम्ह होब दुखारी
श्राप सीस धरि हरषि हियँ प्रभु बहु बिनती कीन्हि
निज माया कै प्रबलता करषि कृपानिधि लीन्हि
जब हरि माया दूरि निवारी नहिं तहँ रमा न राजकुमार
तब मुनि अति सभीत हरि चरना गहे पाहि प्रनतारति हरना
मृषा होउ मम श्राप कृपाला मम इच्छा कह दीनदयाला
मैं दुर्बचन कहे बहुतेरे कह मुनि पाप मिटिहिं किमि मेरे
जपहु जाइ संकर सत नामा होइहि हृदयँ तुरंत बिश्राम
कोउ नहिं सिव समान प्रिय मोरें असि परतीति तजहु जनि भोरें
जेहि पर कृपा न करहिं पुरारी सो न पाव मुनि भगति हमार