Wednesday, October 3, 2007

राम राम कहि राम कहि राम राम कहि राम तनु परिहरि रघुबर बिरहँ राउ गयउ सुरधाम

प्रिया बचन मृदु सुनत नृपु चितयउ आँखि उघारि
तलफत मीन मलीन जनु सींचत सीतल बारि

धरि धीरजु उठी बैठ भुआलू कहु सुमंत्र कहँ राम कृपालू
कहाँ लखनु कहँ रामु सनेही कहँ प्रिय पुत्रबधू बैदेही
बिलपत राउ बिकल बहु भाँती भइ जुग सरिस सिराति राती

तापस अंध साप सुधि आई 
कौसल्यहि सब कथा सुनाई

भयउ बिकल बरनत इतिहासा 
राम रहित धिग जीवन आसा
सो तनु राखि करब मैं काहा जेंहि प्रेम पनु मोर निबाहा
हा रघुनंदन प्रान पिरीते तुम्ह बिनु जिअत बहुत दिन बीते
हा जानकी लखन हा रघुबर हा पितु हित चित चातक जलधर

राम राम कहि राम कहि राम राम कहि राम
तनु परिहरि रघुबर बिरहँ राउ गयउ सुरधाम