Tuesday, August 26, 2008

सीता पहिं जाई त्रिजटा कहि सब कथा सुनाई

Hare Rama
तेही निसि सीता पहिं जाई त्रिजटा कहि सब कथा सुनाई
सिर भुज बाढ़ि सुनत रिपु केरी सीता उर भइ त्रास घनेरी
मुख मलीन उपजी मन चिंता त्रिजटा सन बोली तब सीता
होइहि कहा कहसि किन माता केहि बिधि मरिहि बिस्व दुखदाता
रघुपति सर सिर कटेहुँ मरई बिधि बिपरीत चरित सब करई
मोर अभाग्य जिआवत ओही जेहिं हौ हरि पद कमल बिछोही
जेहिं कृत कपट कनक मृग झूठा अजहुँ सो दैव मोहि पर रूठा
जेहिं बिधि मोहि दुख दुसह सहाए लछिमन कहुँ कटु बचन कहाए
रघुपति बिरह सबिष सर भारी तकि तकि मार बार बहु मारी
ऐसेहुँ दुख जो राख मम प्राना सोइ बिधि ताहि जिआव आना
बहु बिधि कर बिलाप जानकी करि करि सुरति कृपानिधान की
कह त्रिजटा सुनु राजकुमारी उर सर लागत मरइ सुरारी
प्रभु ताते उर हतइ तेही एहि के हृदयँ बसति बैदेही
एहि के हृदयँ बस जानकी जानकी उर मम बास है
मम उदर भुअन अनेक लागत बान सब कर नास है
सुनि बचन हरष बिषाद मन अति देखि पुनि त्रिजटाँ कहा
अब मरिहि रिपु एहि बिधि सुनहि सुंदरि तजहि संसय महा
काटत सिर होइहि बिकल छुटि जाइहि तव ध्यान
तब रावनहि हृदय महुँ मरिहहिं रामु सुजान

अस कहि बहुत भाँति समुझाई पुनि त्रिजटा निज भवन सिधाई
राम सुभाउ सुमिरि बैदेही उपजी बिरह बिथा अति तेही