Saturday, May 31, 2008

जहँ भूप रमानिवास तहँ की संपदा किमि गाइए

जहँ भूप रमानिवास तहँ की संपदा किमि गाइए
बैठे बजाज सराफ बनिक अनेक मनहुँ कुबेर ते
सब सुखी सब सच्चरित सुंदर नारि नर सिसु जरठ जे
उत्तर दिसि सरजू बह निर्मल जल गंभीर
बाँधे घाट मनोहर स्वल्प पंक नहिं तीर।

दूरि फराक रुचिर सो घाटा जहँ जल पिअहिं बाजि गज ठाटा
पनिघट परम मनोहर नाना तहाँ पुरुष करहिं अस्नाना
राजघाट सब बिधि सुंदर बर मज्जहिं तहाँ बरन चारिउ नर
तीर तीर देवन्ह के मंदिर चहुँ दिसि तिन्ह के उपबन सुंदर
कहुँ कहुँ सरिता तीर उदासी। बसहिं ग्यान रत मुनि संन्यासी
तीर तीर तुलसिका सुहाई बृंद बृंद बहु मुनिन्ह लगाई
पुर सोभा कछु बरनि जाई बाहेर नगर परम रुचिराई
देखत पुरी अखिल अघ भागा बन उपबन बापिका तड़ागा
बापीं तड़ाग अनूप कूप मनोहरायत सोहहीं
सोपान सुंदर नीर निर्मल देखि सुर मुनि मोहहीं
बहु रंग कंज अनेक खग कूजहिं मधुप गुंजारहीं
आराम रम्य पिकादि खग रव जनु पथिक हंकारहीं
रमानाथ जहँ राजा सो पुर बरनि कि जाइ
अनिमादिक सुख संपदा रहीं अवध सब छाइ

जहँ तहँ नर रघुपति गुन गावहिं बैठि परसपर इहइ सिखावहिं
भजहु प्रनत प्रतिपालक रामह सोभा सील रूप गुन धामहि
जलज बिलोचन स्यामल गातहिपलक नयन इव सेवक त्रातहि
धृत सर रुचिर चाप तूनीरहिसंत कंज बन रबि रनधीरहि
काल कराल ब्याल खगराजहि नमत राम अकाम ममता जहि
लोभ मोह मृगजूथ किरातहिमनसिज करि हरि जन सुखदातहि
संसय सोक निबिड़ तम भानुहि दनुज गहन घन दहन कृसानुहि
जनकसुता समेत रघुबीरहि कस भजहु भंजन भव भीरहि
बहु बासना मसक हिम रासिह सदा एकरस अज अबिनासिहि
मुनि रंजन भंजन महि भारहि तुलसिदास के प्रभुहि उदारहि