बहु प्रकार गिरि कानन हेरहिं कोउ मुनि मिलत ताहि सब घेरहिं
लागि तृषा अतिसय अकुलाने मिलइ न जल घन गहन भुलाने
मन हनुमान कीन्ह अनुमाना मरन चहत सब बिनु जल पाना
चढ़ि गिरि सिखर चहूँ दिसि देखा भूमि बिबिर एक कौतुक पेखा
चक्रबाक बक हंस उड़ाहीं
बहुतक खग प्रबिसहिं तेहि माहीं
गिरि ते उतरि पवनसुत आवा
गिरि ते उतरि पवनसुत आवा
सब कहुँ लै सोइ बिबर देखावा
आगें कै हनुमंतहि लीन्हा
आगें कै हनुमंतहि लीन्हा
पैठे बिबर बिलंबु न कीन्हा
दीख जाइ उपवन बर सर बिगसित बहु कंज
मंदिर एक रुचिर तहँ बैठि नारि तप पुंज{स्वयंप्रभा }
दूरि ते ताहि सबन्हि सिर नावा
पूछें निज बृत्तांत सुनावा
तेहिं तब कहा करहु जल पाना
तेहिं तब कहा करहु जल पाना
खाहु सुरस सुंदर फल नाना
मज्जनु कीन्ह मधुर फल खाए
मज्जनु कीन्ह मधुर फल खाए
तासु निकट पुनि सब चलि आए
तेहिं सब आपनि कथा सुनाई
तेहिं सब आपनि कथा सुनाई
मैं अब जाब जहाँ रघुराई
मूदहु नयन बिबर तजि जाहू
पैहहु सीतहि जनि पछिताहू
नयन मूदि पुनि देखहिं बीरा
ठाढ़े सकल सिंधु कें तीरा
सो पुनि गई जहाँ रघुनाथा जाइ कमल पद नाएसि माथा
नाना भाँति बिनय तेहिं कीन्ही अनपायनी भगति प्रभु दीन्ही
बदरीबन कहुँ सो गई प्रभु अग्या धरि सीस
उर धरि राम चरन जुग जे बंदत अज ईस