Sunday, December 16, 2007

उठे रामु सुनि पेम अधीरा कहुँ पट कहुँ निषंग धनु तीरा बरबस लिए उठाइ उर लाए कृपानिधान

भरत दीख प्रभु आश्रमु पावन सकल सुमंगल सदनु सुहावन
करत प्रबेस मिटे दुख दावा जनु जोगीं परमारथु पावा
देखे भरत लखन प्रभु आगे पूँछे बचन कहत अनुरागे
सीस जटा कटि मुनि पट बाँधें तून कसें कर सरु धनु काँधें
बेदी पर मुनि साधु समाजू सीय सहित राजत रघुराजू
बलकल बसन जटिल तनु स्यामा जनु मुनि बेष कीन्ह रति कामा
कर कमलनि धनु सायकु फेरत जिय की जरनि हरत हँसि हेरत
लसत मंजु मुनि मंडली मध्य सीय रघुचंदु
ग्यान सभाँ जनु तनु धरे भगति सच्चिदानंदु

सानुज सखा समेत मगन मन बिसरे हरष सोक सुख दुख गन
पाहि नाथ कहि पाहि गोसाई भूतल परे लकुट की नाई
बचन सपेम लखन पहिचाने करत प्रनामु भरत जियँ जाने
बंधु सनेह सरस एहि ओरा उत साहिब सेवा बस जोरा
मिलि जाइ नहिं गुदरत बनई सुकबि लखन मन की गति भनई
रहे राखि सेवा पर भारू चढ़ी चंग जनु खैंच खेलारू
कहत सप्रेम नाइ महि माथा भरत प्रनाम करत रघुनाथा
उठे रामु सुनि पेम अधीरा कहुँ पट कहुँ निषंग धनु तीरा
बरबस लिए उठाइ उर लाए कृपानिधान
भरत राम की मिलनि लखि बिसरे सबहि अपान

मिलनि प्रीति किमि जाइ बखानी कबिकुल अगम करम मन बानी
परम पेम पूरन दोउ भाई मन बुधि चित अहमिति बिसराई
कहहु सुपेम प्रगट को करई केहि छाया कबि मति अनुसरई