भरत दीख प्रभु आश्रमु पावन सकल सुमंगल सदनु सुहावन
करत प्रबेस मिटे दुख दावा जनु जोगीं परमारथु पावा
देखे भरत लखन प्रभु आगे पूँछे बचन कहत अनुरागे
सीस जटा कटि मुनि पट बाँधें तून कसें कर सरु धनु काँधें
बेदी पर मुनि साधु समाजू सीय सहित राजत रघुराजू
बलकल बसन जटिल तनु स्यामा जनु मुनि बेष कीन्ह रति कामा
कर कमलनि धनु सायकु फेरत जिय की जरनि हरत हँसि हेरत
लसत मंजु मुनि मंडली मध्य सीय रघुचंदु
ग्यान सभाँ जनु तनु धरे भगति सच्चिदानंदु
सानुज सखा समेत मगन मन बिसरे हरष सोक सुख दुख गन
पाहि नाथ कहि पाहि गोसाई भूतल परे लकुट की नाई
बचन सपेम लखन पहिचाने करत प्रनामु भरत जियँ जाने
बंधु सनेह सरस एहि ओरा उत साहिब सेवा बस जोरा
मिलि न जाइ नहिं गुदरत बनई सुकबि लखन मन की गति भनई
रहे राखि सेवा पर भारू चढ़ी चंग जनु खैंच खेलारू
कहत सप्रेम नाइ महि माथा भरत प्रनाम करत रघुनाथा
उठे रामु सुनि पेम अधीरा कहुँ पट कहुँ निषंग धनु तीरा
बरबस लिए उठाइ उर लाए कृपानिधान
भरत राम की मिलनि लखि बिसरे सबहि अपान
परम पेम पूरन दोउ भाई मन बुधि चित अहमिति बिसराई
कहहु सुपेम प्रगट को करई केहि छाया कबि मति अनुसरई