नाथ साथ मुनिनाथ के मातु सकल पुर लोग
सेवक सेनप सचिव सब आए बिकल बियोग
सीलसिंधु सुनि गुर आगवनू सिय समीप राखे रिपुदवनू
चले सबेग रामु तेहि काला धीर धरम धुर दीनदयाला
गुरहि देखि सानुज अनुरागे दंड प्रनाम करन प्रभु लागे
मुनिबर धाइ लिए उर लाई प्रेम उमगि भेंटे दोउ भाई
प्रेम पुलकि केवट कहि नामू कीन्ह दूरि तें दंड प्रनामू
रामसखा रिषि बरबस भेंटा जनु महि लुठत सनेह समेटा
रघुपति भगति सुमंगल मूला नभ सराहि सुर बरिसहिं फूला
एहि सम निपट नीच कोउ नाहीं। बड़ बसिष्ठ सम को जग माहीं
जेहि लखि लखनहु तें अधिक मिले मुदित मुनिराउ
सो सीतापति भजन को प्रगट प्रताप प्रभाउ
आरत लोग राम सबु जाना करुनाकर सुजान भगवाना
जो जेहि भायँ रहा अभिलाषी तेहि तेहि कै तसि तसि रुख राखी
सानुज मिलि पल महु सब काहू कीन्ह दूरि दुखु दारुन दाहू
यह बड़ि बातँ राम कै नाहीं जिमि घट कोटि एक रबि छाहीं
मिलि केवटिहि उमगि अनुरागा पुरजन सकल सराहहिं भागा
देखीं राम दुखित महतारीं जनु सुबेलि अवलीं हिम मारीं
प्रथम राम भेंटी कैकेई सरल सुभायँ भगति मति भेई
पग परि कीन्ह प्रबोधु बहोरी काल करम बिधि सिर धरि खोरी
भेटीं रघुबर मातु सब करि प्रबोधु परितोषु
अंब ईस आधीन जगु काहु न देइअ दोषु