Wednesday, December 19, 2007

प्रथम राम भेंटी कैकेई सरल सुभायँ भगति मति भेई

नाथ साथ मुनिनाथ के मातु सकल पुर लोग

सेवक सेनप सचिव सब आए बिकल बियोग

सीलसिंधु सुनि गुर आगवनू सिय समीप राखे रिपुदवनू
चले सबेग रामु तेहि काला धीर धरम धुर दीनदयाला
गुरहि देखि सानुज अनुरागे दंड प्रनाम करन प्रभु लागे
मुनिबर धाइ लिए उर लाई प्रेम उमगि भेंटे दोउ भाई
प्रेम पुलकि केवट कहि नामू कीन्ह दूरि तें दंड प्रनामू
रामसखा रिषि बरबस भेंटा जनु महि लुठत सनेह समेटा
रघुपति भगति सुमंगल मूला नभ सराहि सुर बरिसहिं फूला
एहि सम निपट नीच कोउ नाहीं। बड़ बसिष्ठ सम को जग माहीं
जेहि लखि लखनहु तें अधिक मिले मुदित मुनिराउ
सो सीतापति भजन को प्रगट प्रताप प्रभाउ

आरत लोग राम सबु जाना करुनाकर सुजान भगवाना
जो जेहि भायँ रहा अभिलाषी तेहि तेहि कै तसि तसि रुख राखी
सानुज मिलि पल महु सब काहू कीन्ह दूरि दुखु दारुन दाहू
यह बड़ि बातँ राम कै नाहीं जिमि घट कोटि एक रबि छाहीं
मिलि केवटिहि उमगि अनुरागा पुरजन सकल सराहहिं भागा
देखीं राम दुखित महतारीं जनु सुबेलि अवलीं हिम मारीं
प्रथम राम भेंटी कैकेई सरल सुभायँ भगति मति भेई
पग परि कीन्ह प्रबोधु बहोरी काल करम बिधि सिर धरि खोरी
भेटीं रघुबर मातु सब करि प्रबोधु परितोषु
अंब ईस आधीन जगु काहु देइअ दोषु