Friday, December 7, 2007

जो अपराधु भगत कर करई राम रोष पावक सो जरई

रामु सँकोची प्रेम बस भरत सपेम पयोधि
बनी बात बेगरन चहति करिअ जतनु छलु सोधि

बचन सुनत सुरगुरु मुसकाने सहसनयन बिनु लोचन जाने
मायापति सेवक सन माया करइ उलटि परइ सुरराया
तब किछु कीन्ह राम रुख जानी अब कुचालि करि होइहि हानी
सुनु सुरेस रघुनाथ सुभाऊ निज अपराध रिसाहिं काऊ
जो अपराधु भगत कर करई राम रोष पावक सो जरई
लोकहुँ बेद बिदित इतिहासा यह महिमा जानहिं दुरबासा
भरत सरिस को राम सनेही जगु जप राम रामु जप जेही
मनहुँ आनिअ अमरपति रघुबर भगत अकाजु
अजसु लोक परलोक दुख दिन दिन सोक समाजु

सुनु सुरेस उपदेसु हमारा रामहि सेवकु परम पिआरा
मानत सुखु सेवक सेवकाई सेवक बैर बैरु अधिकाई
जद्यपि सम नहिं राग रोषू गहहिं पाप पूनु गुन दोषू
करम प्रधान बिस्व करि राखा जो जस करइ सो तस फलु चाखा
तदपि करहिं सम बिषम बिहारा भगत अभगत हृदय अनुसारा
अगुन अलेप अमान एकरस रामु सगुन भए भगत पेम बस
राम सदा सेवक रुचि राखी बेद पुरान साधु सुर साखी
अस जियँ जानि तजहु कुटिलाई करहु भरत पद प्रीति सुहाई
राम भगत परहित निरत पर दुख दुखी दयाल
भगत सिरोमनि भरत तें जनि डरपहु सुरपाल