Saturday, December 1, 2007

सुनहु भरत हम झूठ न कहहीं उदासीन तापस बन रहहीं

सुनहु भरत हम झूठ कहहीं उदासीन तापस बन रहहीं

 


सब साधन कर सुफल सुहावा लखन राम सिय दरसनु पावा
तेहि फल कर फलु दरस तुम्हारा सहित पयाग सुभाग हमारा
भरत धन्य तुम्ह जसु जगु जयऊ कहि अस पेम मगन पुनि भयऊ
सुनि मुनि बचन सभासद हरषे साधु सराहि सुमन सुर बरषे
धन्य धन्य धुनि गगन पयागा सुनि सुनि भरतु मगन अनुरागा
पुलक गात हियँ रामु सिय सजल सरोरुह नैन
करि प्रनामु मुनि मंडलिहि बोले गदगद बैन