Wednesday, February 6, 2008

राम कहा तनु राखहु ताता

एहि बिधि खौजत बिलपत स्वामी मनहुँ महा बिरही अति कामी
पूरनकाम राम सुख रासी मनुज चरित कर अज अबिनासी
आगे परा गीधपति देखा सुमिरत राम चरन जिन्ह रेखा
कर सरोज सिर परसेउ कृपासिंधु रधुबीर
निरखि राम छबि धाम मुख बिगत भई सब पीर



तब कह गीध बचन धरि धीरा  सुनहु राम भंजन भव भीरा
नाथ दसानन यह गति कीन्ही तेहि खल जनकसुता हरि लीन्ही
लै दच्छिन दिसि गयउ गोसाई बिलपति अति कुररी की नाई
दरस लागी प्रभु राखेंउँ प्राना चलन चहत अब कृपानिधाना




राम कहा तनु राखहु ताता मुख मुसकाइ कही तेहिं बाता
जा कर नाम मरत मुख आवा अधमउ मुकुत होई श्रुति गावा
सो मम लोचन गोचर आगें राखौं देह नाथ केहि खाँगेँ
जल भरि नयन कहहिँ रघुराई तात कर्म निज ते गतिं पाई
परहित बस जिन्ह के मन माहीँ तिन्ह कहुँ जग दुर्लभ कछु नाहीँ
तनु तजि तात जाहु मम धामा देउँ काह तुम्ह पूरनकामा
सीता हरन तात जनि कहहु पिता सन जाइ
जौँ मैँ राम कुल सहित कहिहि दसानन आइ

गीध देह तजि धरि हरि रुपा भूषन बहु पट पीत अनूपा
स्याम गात बिसाल भुज चारी अस्तुति करत नयन भरि बारी


अबिरल भगति मागि बर गीध गयउ हरिधाम
तेहि की क्रिया जथोचित निज कर कीन्ही राम
कोमल चित अति दीनदयाला कारन बिनु रघुनाथ कृपाला
गीध अधम खग आमिष भोगी गति दीन्हि जो जाचत जोगी


सुनहु उमा ते लोग अभागी हरि तजि होहिं बिषय अनुरागी