पुनि प्रभु गए सरोबर तीरा पंपा नाम सुभग गंभीरा
संत हृदय जस निर्मल बारी बाँधे घाट मनोहर चारी
जहँ तहँ पिअहिं बिबिध मृग नीरा जनु उदार गृह जाचक भीरा
पुरइनि सबन ओट जल बेगि न पाइअ मर्म
मायाछन्न न देखिऐ जैसे निर्गुन ब्रह्म
सुखि मीन सब एकरस अति अगाध जल माहिं
जथा धर्मसीलन्ह के दिन सुख संजुत जाहिं
बिकसे सरसिज नाना रंगा मधुर मुखर गुंजत बहु भृंगा
बोलत जलकुक्कुट कलहंसा प्रभु बिलोकि जनु करत प्रसंसा
चक्रवाक बक खग समुदाई देखत बनइ बरनि नहिं जाई
सुन्दर खग गन गिरा सुहाई जात पथिक जनु लेत बोलाई
ताल समीप मुनिन्ह गृह छाए चहु दिसि कानन बिटप सुहाए
चंपक बकुल कदंब तमाला पाटल पनस परास रसाला
नव पल्लव कुसुमित तरु नाना चंचरीक पटली कर गाना
सीतल मंद सुगंध सुभाऊ संतत बहइ मनोहर बाऊ
कुहू कुहू कोकिल धुनि करहीं सुनि रव सरस ध्यान मुनि टरहीं
फल भारन नमि बिटप सब रहे भूमि निअराइ
पर उपकारी पुरुष जिमि नवहिं सुसंपति पाइ
देखि राम अति रुचिर तलावा मज्जनु कीन्ह परम सुख पावा
देखी सुंदर तरुबर छाया बैठे अनुज सहित रघुराया
तहँ पुनि सकल देव मुनि आए अस्तुति करि निज धाम सिधाए