Wednesday, February 13, 2008

राखिअ नारि जदपि उर माहीं जुबती सास्त्र नृपति बस नाहीं

चले राम त्यागा बन सोऊ अतुलित बल नर केहरि दोऊ
बिरही इव प्रभु करत बिषादा कहत कथा अनेक संबादा
लछिमन देखु बिपिन कइ सोभा देखत केहि कर मन नहिं छोभा
नारि सहित सब खग मृग बृंदा मानहुँ मोरि करत हहिं निंदा
हमहि देखि मृग निकर पराहीं मृगीं कहहिं तुम्ह कहँ भय नाहीं
तुम्ह आनंद करहु मृग जाए कंचन मृग खोजन आए
संग लाइ करिनीं करि लेहीं मानहुँ मोहि सिखावनु देहीं


सास्त्र सुचिंतित पुनि पुनि देखिअ भूप सुसेवित बस नहिं लेखिअ

राखिअ नारि जदपि उर माहीं जुबती सास्त्र नृपति बस नाहीं

देखहु तात बसंत सुहावा प्रिया हीन मोहि भय उपजावा
बिरह बिकल बलहीन मोहि जानेसि निपट अकेल।
सहित बिपिन मधुकर खग मदन कीन्ह बगमेल
देखि गयउ भ्राता सहित तासु दूत सुनि बात
डेरा कीन्हेउ मनहुँ तब कटकु हटकि मनजात

बिटप बिसाल लता अरुझानी बिबिध बितान दिए जनु तानी
कदलि ताल बर धुजा पताका दैखि मोह धीर मन जाका
बिबिध भाँति फूले तरु नाना जनु बानैत बने बहु बाना
कहुँ कहुँ सुन्दर बिटप सुहाए जनु भट बिलग बिलग होइ छाए
कूजत पिक मानहुँ गज माते ढेक महोख ऊँट बिसराते
मोर चकोर कीर बर बाजी पारावत मराल सब ताजी
तीतिर लावक पदचर जूथा बरनि जाइ मनोज बरुथा
रथ गिरि सिला दुंदुभी झरना चातक बंदी गुन गन बरना
मधुकर मुखर भेरि सहनाई त्रिबिध बयारि बसीठीं आई
चतुरंगिनी सेन सँग लीन्हें बिचरत सबहि चुनौती दीन्हें
लछिमन देखत काम अनीका रहहिं धीर तिन्ह कै जग लीका
एहि कें एक परम बल नारी तेहि तें उबर सुभट सोइ भारी

तात तीनि अति प्रबल खल काम क्रोध अरु लोभ
मुनि बिग्यान धाम मन करहिं निमिष महुँ छोभ
लोभ कें इच्छा दंभ बल काम कें केवल नारि
क्रोध के परुष बचन बल मुनिबर कहहिं बिचारि


गुनातीत सचराचर स्वामी राम उमा सब अंतरजामी
कामिन्ह कै दीनता देखाई धीरन्ह कें मन बिरति दृढ़ाई
क्रोध मनोज लोभ मद माया छूटहिं सकल राम कीं दाया
सो नर इंद्रजाल नहिं भूला जा पर होइ सो नट अनुकूला


उमा कहउँ मैं अनुभव अपना 
सत हरि भजनु जगत सब सपना