Monday, September 8, 2008

एक बार रघुनाथ बोलाए

Hare Rama
एक बार रघुनाथ बोलाए गुर द्विज पुरबासी सब आए
बैठे गुर मुनि अरु द्विज सज्जन बोले बचन भगत भव भंजन
सनहु सकल पुरजन मम बानी कहउँ कछु ममता उर आनी
नहिं अनीति नहिं कछु प्रभुताई सुनहु करहु जो तुम्हहि सोहाई
सोइ सेवक प्रियतम मम सोई मम अनुसासन मानै जोई
जौं अनीति कछु भाषौं भाई तौं मोहि बरजहु भय बिसराई
बड़ें भाग मानुष तनु पावा सुर दुर्लभ सब ग्रंथिन्ह गावा
साधन धाम मोच्छ कर द्वारा पाइ जेहिं परलोक सँवारा

सो परत्र दुख पावइ सिर धुनि धुनि पछिताइ
कालहि कर्महि ईस्वरहि मिथ्या दोष लगाइ


एहि तन कर फल बिषय भाई स्वर्गउ स्वल्प अंत दुखदाई
नर तनु पाइ बिषयँ मन देहीं पलटि सुधा ते सठ बिष लेहीं
ताहि कबहुँ भल कहइ कोई गुंजा ग्रहइ परस मनि खोई
आकर चारि लच्छ चौरासी जोनि भ्रमत यह जिव अबिनासी

फिरत सदा माया कर प्रेरा 
काल कर्म सुभाव गुन घेरा

कबहुँक करि करुना नर देही देत ईस बिनु हेतु सनेही
नर तनु भव बारिधि कहुँ बेरो सन्मुख मरुत अनुग्रह मेरो
करनधार सदगुर दृढ़ नावा दुर्लभ साज सुलभ करि पावा

जो तरै भव सागर नर समाज अस पाइ
सो कृत निंदक मंदमति आत्माहन गति जाइ


जौं परलोक इहाँ सुख चहहू सुनि मम बचन ह्रृदयँ दृढ़ गहहू
सुलभ सुखद मारग यह भाई भगति मोरि पुरान श्रुति गाई

ग्यान अगम प्रत्यूह अनेका साधन कठिन मन कहुँ टेका
करत कष्ट बहु पावइ कोऊ भक्ति हीन मोहि प्रिय नहिं सोऊ

भक्ति सुतंत्र सकल सुख खानी बिनु सतसंग पावहिं प्रानी
पुन्य पुंज बिनु मिलहिं संता सतसंगति संसृति कर अंता
पुन्य एक जग महुँ नहिं दूजा मन क्रम बचन बिप्र पद पूजा
सानुकूल तेहि पर मुनि देवा जो तजि कपटु करइ द्विज सेवा

औरउ एक गुपुत मत सबहि कहउँ कर जोरि
संकर भजन बिना नर भगति पावइ मोरि