Monday, April 14, 2008

अति दारुन दुखद मायारूपी नारि

अति प्रसन्न रघुनाथहि जानी पुनि नारद बोले मृदु बानी
राम जबहिं प्रेरेउ निज माया मोहेहु मोहि सुनहु रघुराया

तब बिबाह मैं चाहउँ कीन्हा प्रभु केहि कारन करै दीन्हा

सुनु मुनि तोहि कहउँ सहरोसा भजहिं जे मोहि तजि सकल भरोसा
करउँ सदा तिन्ह कै रखवारी जिमि बालक राखइ महतारी
गह सिसु बच्छ अनल अहि धाई तहँ राखइ जननी अरगाई
प्रौढ़ भएँ तेहि सुत पर माता प्रीति करइ नहिं पाछिलि बाता
मोरे प्रौढ़ तनय सम ग्यानी बालक सुत सम दास अमानी
जनहि मोर बल निज बल ताही ग्यान भगति नहिं तजहीं
काम क्रोध लोभादि मद प्रबल मोह कै धारि
तिन्ह महँ अति दारुन दुखद मायारूपी नारि

सुनि मुनि कह पुरान श्रुति संता मोह बिपिन कहुँ नारि बसंता
जप तप नेम जलाश्रय झारी होइ ग्रीषम सोषइ सब नारी
काम क्रोध मद मत्सर भेका इन्हहि हरषप्रद बरषा एका
दुर्बासना कुमुद समुदाई तिन्ह कहँ सरद सदा सुखदाई
धर्म सकल सरसीरुह बृंदा होइ हिम तिन्हहि दहइ सुख मंदा
पुनि ममता जवास बहुताई पलुहइ नारि सिसिर रितु पाई
पाप उलूक निकर सुखकारी नारि निबिड़ रजनी अँधिआरी
बुधि बल सील सत्य सब मीना बनसी सम त्रिय कहहिं प्रबीना
अवगुन मूल सूलप्रद प्रमदा सब दुख खानि
ताते कीन्ह निवारन मुनि मैं यह जियँ जानि