प्रथम जन्म के चरित अब कहउँ सुनहु बिहगेस
सुनि प्रभु पद रति उपजइ जातें मिटहिं कलेस
पूरुब कल्प एक प्रभु जुग कलिजुग मल मूल
नर अरु नारि अधर्म रत सकल निगम प्रतिकूल
तेहि कलिजुग कोसलपुर जाई। जन्मत भयउँ सूद्र तनु पाई
सिव सेवक मन क्रम अरु बानी आन देव निंदक अभिमानी
धन मद मत्त परम बाचाला उग्रबुद्धि उर दंभ बिसाला
जदपि रहेउँ रघुपति रजधानी तदपि न कछु महिमा तब जानी
अब जाना मैं अवध प्रभावा निगमागम पुरान अस गावा
कवनेहुँ जन्म अवध बस जोई राम परायन सो परि होई
अवध प्रभाव जान तब प्रानी जब उर बसहिं रामु धनुपानी
सो कलिकाल कठिन उरगारी पाप परायन सब नर नारी
कलिमल ग्रसे धर्म सब लुप्त भए सदग्रंथ
दंभिन्ह निज मति कल्पि करि प्रगट किए बहु पंथ
भए लोग सब मोहबस लोभ ग्रसे सुभ कर्म
सुनु हरिजान ग्यान निधि कहउँ कछुक कलिधर्म
बरन धर्म नहिं आश्रम चारी श्रुति बिरोध रत सब नर नारी
द्विज श्रुति बेचक भूप प्रजासन कोउ नहिं मान निगम अनुसासन
मारग सोइ जा कहुँ जोइ भावा पंडित सोइ जो गाल बजावा
मिथ्यारंभ दंभ रत जोई ता कहुँ संत कहइ सब कोई
सोइ सयान जो परधन हारी जो कर दंभ सो बड़ आचारी
जौ कह झूँठ मसखरी जाना कलिजुग सोइ गुनवंत बखाना
निराचार जो श्रुति पथ त्यागी कलिजुग सोइ ग्यानी सो बिरागी
जाकें नख अरु जटा बिसाला सोइ तापस प्रसिद्ध कलिकाला
असुभ बेष भूषन धरें भच्छाभच्छ जे खाहिं
तेइ जोगी तेइ सिद्ध नर पूज्य ते कलिजुग माहिं
जे अपकारी चार तिन्ह कर गौरव मान्य तेइ
मन क्रम बचन लबार तेइ बकता कलिकाल महुँ
नारि बिबस नर सकल गोसाई नाचहिं नट मर्कट की नाई
सूद्र द्विजन्ह उपदेसहिं ग्याना मेलि जनेऊ लेहिं कुदाना
सब नर काम लोभ रत क्रोधी देव बिप्र श्रुति संत बिरोधी
गुन मंदिर सुंदर पति त्यागी भजहिं नारि पर पुरुष अभागी
सौभागिनीं बिभूषन हीना बिधवन्ह के सिंगार नबीना
गुर सिष बधिर अंध का लेखा एक न सुनइ एक नहिं देखा
हरइ सिष्य धन सोक न हरई सो गुर घोर नरक महुँ परई
मातु पिता बालकन्हि बोलाबहिं उदर भरै सोइ धर्म सिखावहिं
ब्रह्म ग्यान बिनु नारि नर कहहिं न दूसरि बा
कौड़ी लागि लोभ बस करहिं बिप्र गुर घात
बादहिं सूद्र द्विजन्ह सन हम तुम्ह ते कछु घाटि
जानइ ब्रह्म सो बिप्रबर आँखि देखावहिं डाटि
पर त्रिय लंपट कपट सयाने मोह द्रोह ममता लपटाने
तेइ अभेदबादी ग्यानी नर देखा में चरित्र कलिजुग कर
आपु गए अरु तिन्हहू घालहिं जे कहुँ सत मारग प्रतिपालहिं
कल्प कल्प भरि एक एक नरका परहिं जे दूषहिं श्रुति करि तरका
जे बरनाधम तेलि कुम्हारा स्वपच किरात कोल कलवार
नारि मुई गृह संपति नासी मूड़ मुड़ाइ होहिं सन्यासी
ते बिप्रन्ह सन आपु पुजावहिं उभय लोक निज हाथ नसावहिं
बिप्र निरच्छर लोलुप कामी। निराचार सठ बृषली स्वामी
सूद्र करहिं जप तप ब्रत नाना बैठि बरासन कहहिं पुराना
सब नर कल्पित करहिं अचारा जाइ न बरनि अनीति अपारा
भए बरन संकर कलि भिन्नसेतु सब लोग
करहिं पाप पावहिं दुख भय रुज सोक बियोग
श्रुति संमत हरि भक्ति पथ संजुत बिरति बिबेक
तेहि न चलहिं नर मोह बस कल्पहिं पंथ अनेक
तपसी धनवंत दरिद्र गृही कलि कौतुक तात न जात कही
कुलवंति निकारहिं नारि सती गृह आनिहिं चेरी निबेरि गती
सुत मानहिं मातु पिता तब लौं अबलानन दीख नहीं जब लौं
ससुरारि पिआरि लगी जब तें रिपरूप कुटुंब भए तब तें
नृप पाप परायन धर्म नहीं करि दंड बिडंब प्रजा नितहीं
धनवंत कुलीन मलीन अपी द्विज चिन्ह जनेउ उघार तपी
नहिं मान पुरान न बेदहि जो हरि सेवक संत सही कलि सो
कबि बृंद उदार दुनी न सुनी गुन दूषक ब्रात न कोपि गुनी।
कलि बारहिं बार दुकाल परै बिनु अन्न दुखी सब लोग मरै
सुनु खगेस कलि कपट हठ दंभ द्वेष पाषंड
मान मोह मारादि मद ब्यापि रहे ब्रह्मंड
तामस धर्म करहिं नर जप तप ब्रत मख दान
देव न बरषहिं धरनीं बए न जामहिं धान
अबला कच भूषन भूरि छुधा धनहीन दुखी ममता बहुधा
सुख चाहहिं मूढ़ न धर्म रता मति थोरि कठोरि न कोमलता
नर पीड़ित रोग न भोग कहीं अभिमान बिरोध अकारनहीं
लघु जीवन संबतु पंच दसा कलपांत न नास गुमानु असा
कलिकाल बिहाल किए मनुजा नहिं मानत क्वौ अनुजा तनुजा
नहिं तोष बिचार न सीतलता सब जाति कुजाति भए मगता
इरिषा परुषाच्छर लोलुपता भरि पूरि रही समता बिगता
सब लोग बियोग बिसोक हुए बरनाश्रम धर्म अचार गए
दम दान दया नहिं जानपनी जड़ता परबंचनताति घनी
तनु पोषक नारि नरा सगरे। परनिंदक जे जग मो बगरे
सुनु ब्यालारि काल कलि मल अवगुन आगार
गुनउँ बहुत कलिजुग कर बिनु प्रयास निस्तार
कृतजुग त्रेता द्वापर पूजा मख अरु जोग
जो गति होइ सो कलि हरि नाम ते पावहिं लोग
कृतजुग सब जोगी बिग्यानी करि हरि ध्यान तरहिं भव प्रानी
त्रेताँ बिबिध जग्य नर करहीं प्रभुहि समर्पि कर्म भव तरहीं
द्वापर करि रघुपति पद पूजा नर भव तरहिं उपाय न दूजा
कलिजुग केवल हरि गुन गाहा गावत नर पावहिं भव थाहा
कलिजुग जोग न जग्य न ग्याना एक अधार राम गुन गाना
सब भरोस तजि जो भज रामहि प्रेम समेत गाव गुन ग्रामहि
सोइ भव तर कछु संसय नाहीं नाम प्रताप प्रगट कलि माहीं
कलि कर एक पुनीत प्रतापा मानस पुन्य होहिं नहिं पापा
कलिजुग सम जुग आन नहिं जौं नर कर बिस्वास
गाइ राम गुन गन बिमलँ भव तर बिनहिं प्रयास
प्रगट चारि पद धर्म के कलिल महुँ एक प्रधान
जेन केन बिधि दीन्हें दान करइ कल्यान