मानस रोग कहहु समुझाई तुम्ह सर्बग्य कृपा अधिकाई
तात सुनहु सादर अति प्रीतीमैं संछेप कहउँ यह नीती
नर तन सम नहिं कवनिउ देही जीव चराचर जाचत तेही
नरग स्वर्ग अपबर्ग निसेनी ग्यान बिराग भगति सुभ देनी
सो तनु धरि हरि भजहिं न जे नर।होहिं बिषय रत मंद मंद तर
काँच किरिच बदलें ते लेही कर ते डारि परस मनि देहीं
नहिं दरिद्र सम दुख जग माहीं संत मिलन सम सुख जग नाहीं
पर उपकार बचन मन काया संत सहज सुभाउ खगराया
संत सहहिं दुख परहित लागी परदुख हेतु असंत अभागी
भूर्ज तरू सम संत कृपाला परहित निति सह बिपति बिसाला
सन इव खल पर बंधन करई खाल कढ़ाइ बिपति सहि मरई
खल बिनु स्वारथ पर अपकारी अहि मूषक इव सुनु उरगारी
पर संपदा बिनासि नसाहीं।जिमि ससि हति हिम उपल बिलाहीं
दुष्ट उदय जग आरति हेतू जथा प्रसिद्ध अधम ग्रह केतू
संत उदय संतत सुखकारी। बिस्व सुखद जिमि इंदु तमारी
परम धर्म श्रुति बिदित अहिंसा पर निंदा सम अघ न गरीसा
हर गुर निंदक दादुर होई जन्म सहस्त्र पाव तन सोई
द्विज निंदक बहु नरक भोग करि जग जनमइ बायस सरीर धरि
सुर श्रुति निंदक जे अभिमानी रौरव नरक परहिं ते प्रानी
होहिं उलूक संत निंदा रत मोह निसा प्रिय ग्यान भानु गत
सब के निंदा जे जड़ करहीं ते चमगादुर होइ अवतरहीं
सुनहु तात अब मानस रोगा जिन्ह ते दुख पावहिं सब लोगा
मोह सकल ब्याधिन्ह कर मूला तिन्ह ते पुनि उपजहिं बहु सूला
काम बात कफ लोभ अपारा क्रोध पित्त नित छाती जारा
प्रीति करहिं जौं तीनिउ भाई उपजइ सन्यपात दुखदाई
बिषय मनोरथ दुर्गम नाना ते सब सूल नाम को जाना
ममता दादु कंडु इरषाई हरष बिषाद गरह बहुताई
पर सुख देखि जरनि सोइ छई कुष्ट दुष्टता मन कुटिलई
अहंकार अति दुखद डमरुआ दंभ कपट मद मान नेहरुआ
तृस्ना उदरबृद्धि अति भारी त्रिबिध ईषना तरुन तिजारी
जुग बिधि ज्वर मत्सर अबिबेका कहँ लागि कहौं कुरोग अनेका
एक ब्याधि बस नर मरहिं ए असाधि बहु ब्याधि
पीड़हिं संतत जीव कहुँ सो किमि लहै समाधि
नेम धर्म आचार तप ग्यान जग्य जप दान
भेषज पुनि कोटिन्ह नहिं रोग जाहिं हरिजान
Hare Rama
तात सुनहु सादर अति प्रीतीमैं संछेप कहउँ यह नीती
नर तन सम नहिं कवनिउ देही जीव चराचर जाचत तेही
नरग स्वर्ग अपबर्ग निसेनी ग्यान बिराग भगति सुभ देनी
सो तनु धरि हरि भजहिं न जे नर।होहिं बिषय रत मंद मंद तर
काँच किरिच बदलें ते लेही कर ते डारि परस मनि देहीं
नहिं दरिद्र सम दुख जग माहीं संत मिलन सम सुख जग नाहीं
पर उपकार बचन मन काया संत सहज सुभाउ खगराया
संत सहहिं दुख परहित लागी परदुख हेतु असंत अभागी
भूर्ज तरू सम संत कृपाला परहित निति सह बिपति बिसाला
सन इव खल पर बंधन करई खाल कढ़ाइ बिपति सहि मरई
खल बिनु स्वारथ पर अपकारी अहि मूषक इव सुनु उरगारी
पर संपदा बिनासि नसाहीं।जिमि ससि हति हिम उपल बिलाहीं
दुष्ट उदय जग आरति हेतू जथा प्रसिद्ध अधम ग्रह केतू
संत उदय संतत सुखकारी। बिस्व सुखद जिमि इंदु तमारी
परम धर्म श्रुति बिदित अहिंसा पर निंदा सम अघ न गरीसा
हर गुर निंदक दादुर होई जन्म सहस्त्र पाव तन सोई
द्विज निंदक बहु नरक भोग करि जग जनमइ बायस सरीर धरि
सुर श्रुति निंदक जे अभिमानी रौरव नरक परहिं ते प्रानी
होहिं उलूक संत निंदा रत मोह निसा प्रिय ग्यान भानु गत
सब के निंदा जे जड़ करहीं ते चमगादुर होइ अवतरहीं
सुनहु तात अब मानस रोगा जिन्ह ते दुख पावहिं सब लोगा
मोह सकल ब्याधिन्ह कर मूला तिन्ह ते पुनि उपजहिं बहु सूला
काम बात कफ लोभ अपारा क्रोध पित्त नित छाती जारा
प्रीति करहिं जौं तीनिउ भाई उपजइ सन्यपात दुखदाई
बिषय मनोरथ दुर्गम नाना ते सब सूल नाम को जाना
ममता दादु कंडु इरषाई हरष बिषाद गरह बहुताई
पर सुख देखि जरनि सोइ छई कुष्ट दुष्टता मन कुटिलई
अहंकार अति दुखद डमरुआ दंभ कपट मद मान नेहरुआ
तृस्ना उदरबृद्धि अति भारी त्रिबिध ईषना तरुन तिजारी
जुग बिधि ज्वर मत्सर अबिबेका कहँ लागि कहौं कुरोग अनेका
एक ब्याधि बस नर मरहिं ए असाधि बहु ब्याधि
पीड़हिं संतत जीव कहुँ सो किमि लहै समाधि
नेम धर्म आचार तप ग्यान जग्य जप दान
भेषज पुनि कोटिन्ह नहिं रोग जाहिं हरिजान
Hare Rama