Wednesday, June 18, 2008

नर सहस्त्र महँ सुनहु पुरारी कोउ एक होइ धर्म ब्रतधारी

बिरति ग्यान बिग्यान दृढ़ राम चरन अति नेह
बायस तन रघुपति भगति मोहि परम संदेह

नर सहस्त्र महँ सुनहु पुरारी कोउ एक होइ धर्म ब्रतधारी
धर्मसील कोटिक महँ कोई बिषय बिमुख बिराग रत होई
कोटि बिरक्त मध्य श्रुति कहई सम्यक ग्यान सकृत कोउ लहई
ग्यानवंत कोटिक महँ कोऊ जीवनमुक्त सकृत जग सोऊ
तिन्ह सहस्त्र महुँ सब सुख खानी दुर्लभ ब्रह्मलीन बिग्यानी
धर्मसील बिरक्त अरु ग्यानी जीवनमुक्त ब्रह्मपर प्रानी
सब ते सो दुर्लभ सुरराया राम भगति रत गत मद माया
सो हरिभगति काग किमि पाई बिस्वनाथ मोहि कहहु बुझाई

राम परायन ग्यान रत गुनागार मति धीर
नाथ कहहु केहि कारन पायउ काक सरीर