बायस तन रघुपति भगति मोहि परम संदेह
नर सहस्त्र महँ सुनहु पुरारी कोउ एक होइ धर्म ब्रतधारी
धर्मसील कोटिक महँ कोई बिषय बिमुख बिराग रत होई
कोटि बिरक्त मध्य श्रुति कहई सम्यक ग्यान सकृत कोउ लहई
ग्यानवंत कोटिक महँ कोऊ जीवनमुक्त सकृत जग सोऊ
तिन्ह सहस्त्र महुँ सब सुख खानी दुर्लभ ब्रह्मलीन बिग्यानी
धर्मसील बिरक्त अरु ग्यानी जीवनमुक्त ब्रह्मपर प्रानी
सब ते सो दुर्लभ सुरराया राम भगति रत गत मद माया
सो हरिभगति काग किमि पाई बिस्वनाथ मोहि कहहु बुझाई
राम परायन ग्यान रत गुनागार मति धीर
नाथ कहहु केहि कारन पायउ काक सरीर