Saturday, January 5, 2008

तापस बेष जनक सिय देखी भयउ पेमु परितोषु बिसेषी

सिय पितु मातु सनेह बस बिकल सकी सँभारि
धरनिसुताँ धीरजु धरेउ समउ सुधरमु बिचारि

तापस बेष जनक सिय देखी भयउ पेमु परितोषु बिसेषी
पुत्रि पवित्र किए कुल दोऊ सुजस धवल जगु कह सबु कोऊ
जिति सुरसरि कीरति सरि तोरी गवनु कीन्ह बिधि अंड करोरी
गंग अवनि थल तीनि बड़ेरे एहिं किए साधु समाज घनेरे
पितु कह सत्य सनेहँ सुबानी सीय सकुच महुँ मनहुँ समानी
पुनि पितु मातु लीन्ह उर लाई सिख आसिष हित दीन्हि सुहाई
कहति सीय सकुचि मन माहीं इहाँ बसब रजनीं भल नाहीं
लखि रुख रानि जनायउ राऊ हृदयँ सराहत सीलु सुभाऊ
बार बार मिलि भेंट सिय बिदा कीन्ह सनमानि
कही समय सिर भरत गति रानि सुबानि सयानि