Sunday, June 1, 2008

तत्व प्रेम कर मम अरु तोरा जानत प्रिया एकु मनु मोरा

हरे रामा 
कपि करि हृदयँ बिचार दीन्हि मुद्रिका डारी तब
जनु असोक अंगार दीन्हि हरषि उठि कर गहेउ

तब देखी मुद्रिका मनोहर राम नाम अंकित अति सुंदर
चकित चितव मुदरी पहिचानी हरष बिषाद हृदयँ अकुलानी
जीति को सकइ अजय रघुराई माया तें असि रचि नहिं जाई
सीता मन बिचार कर नाना मधुर बचन बोलेउ हनुमाना
रामचंद्र गुन बरनैं लागा सुनतहिं सीता कर दुख भागा
लागीं सुनैं श्रवन मन लाई आदिहु तें सब कथा सुनाई
श्रवनामृत जेहिं कथा सुहाई कहि सो प्रगट होति किन भाई
तब हनुमंत निकट चलि गयऊ फिरि बैंठीं मन बिसमय भयऊ
राम दूत मैं मातु जानकी सत्य सपथ करुनानिधान की
यह मुद्रिका मातु मैं आनी दीन्हि राम तुम्ह कहँ सहिदानी
नर बानरहि संग कहु कैसें कहि कथा भइ संगति जैसें
कपि के बचन सप्रेम सुनि उपजा मन बिस्वास
जाना मन क्रम बचन यह कृपासिंधु कर दास


हरिजन जानि प्रीति अति गाढ़ी सजल नयन पुलकावलि बाढ़
बूड़त बिरह जलधि हनुमाना भयउ तात मों कहुँ जलजाना
अब कहु कुसल जाउँ बलिहारी अनुज सहित सुख भवन खरारी
कोमलचित कृपाल रघुराई कपि केहि हेतु धरी निठुराई
सहज बानि सेवक सुख दायक कबहुँक सुरति करत रघुनायक
कबहुँ नयन मम सीतल ताता होइहहि निरखि स्याम मृदु गाता
बचनु आव नयन भरे बार अहह नाथ हौं निपट बिसारी
देखि परम बिरहाकुल सीता बोला कपि मृदु बचन बिनीता
मातु कुसल प्रभु अनुज समेता तव दुख दुखी सुकृपा निकेता
जनि जननी मानहु जियँ ऊना तुम्ह ते प्रेमु राम कें दूना
रघुपति कर संदेसु अब सुनु जननी धरि धीर
अस कहि कपि गद गद भयउ भरे बिलोचन नीर

कहेउ राम बियोग तव सीता मो कहुँ सकल भए बिपरीता
नव तरु किसलय मनहुँ कृसानू कालनिसा सम निसि ससि भानू
कुबलय बिपिन कुंत बन सरिसा बारिद तपत तेल जनु बरिसा
जे हित रहे करत तेइ पीरा उरग स्वास सम त्रिबिध समीरा
कहेहू तें कछु दुख घटि होई काहि कहौं यह जान कोई
तत्व प्रेम कर मम अरु तोरा जानत प्रिया एकु मनु मोरा
सो मनु सदा रहत तोहि पाहीं जानु प्रीति रसु एतेनहि माहीं
प्रभु संदेसु सुनत बैदेही मगन प्रेम तन सुधि नहिं तेही

कह कपि हृदयँ धीर धरु माता सुमिरु राम सेवक सुखदाता
उर आनहु रघुपति प्रभुताई सुनि मम बचन तजहु कदराई
निसिचर निकर पतंग सम रघुपति बान कृसानु
जननी हृदयँ धीर धरु जरे निसाचर जानु

जौं रघुबीर होति सुधि पाई करते नहिं बिलंबु रघुराई
रामबान रबि उएँ जानकी तम बरूथ कहँ जातुधान की
अबहिं मातु मैं जाउँ लवाई प्रभु आयसु नहिं राम दोहाई
कछुक दिवस जननी धरु धीरा कपिन्ह सहित अइहहिं रघुबीरा
निसिचर मारि तोहि लै जैहहिं तिहुँ पुर नारदादि जसु गैहहिं
हैं सुत कपि सब तुम्हहि समाना जातुधान अति भट बलवाना
मोरें हृदय परम संदेहा सुनि कपि प्रगट कीन्ह निज देहा
कनक भूधराकार सरीरा समर भयंकर अतिबल बीरा
सीता मन भरोस तब भयऊ पुनि लघु रूप पवनसुत लयऊ
सुनु माता साखामृग नहिं बल बुद्धि बिसाल
प्रभु प्रताप तें गरुड़हि खाइ परम लघु ब्याल
मन संतोष सुनत कपि बानी भगति प्रताप तेज बल सानी
आसिष दीन्हि रामप्रिय जाना होहु तात बल सील निधाना
अजर अमर गुननिधि सुत होहू करहुँ बहुत रघुनायक छोहू
करहुँ कृपा प्रभु अस सुनि काना निर्भर प्रेम मगन हनुमाना
बार बार नाएसि पद सीसा बोला बचन जोरि कर कीसा
अब कृतकृत्य भयउँ मैं माता आसिष तव अमोघ बिख्याता

हरे रामा