सुनहु भरत हम सब सुधि पाई बिधि करतब पर किछु न बसाई तुम्ह गलानि जियँ जनि करहु समुझी मातु करतूति तात कैकइहि दोसु नहिं गई गिरा मति धूति
तुम्ह कहँ भरत कलंक यह हम सब कहँ उपदेसु राम भगति रस सिद्धि हित भा यह समउ गनेसु