Sunday, November 11, 2007

तुम्ह कहँ भरत कलंक यह हम सब कहँ उपदेसु राम भगति रस सिद्धि हित भा यह समउ गनेसु

सुनहु भरत हम सब सुधि पाई बिधि करतब पर किछु बसाई
तुम्ह गलानि जियँ जनि करहु समुझी मातु करतूति
तात कैकइहि दोसु नहिं गई गिरा मति धूति


तुम्ह कहँ भरत कलंक यह हम सब कहँ उपदेसु
राम भगति रस सिद्धि हित भा यह समउ गनेसु