रामकथा सुरधेनु सम सेवत सब सुख दानि
सतसमाज सुरलोक सब को न सुनै अस जानि
जथा अनंत राम भगवाना तथा कथा कीरति गुन नाना
तदपि जथा श्रुत जसि मति मोरी कहिहउँ देखि प्रीति अति तोरी
उमा प्रस्न तव सहज सुहाई सुखद संतसंमत मोहि भाई
एक बात नहिं मोहि सोहानी जदपि मोह बस कहेहु भवानी
तुम जो कहा राम कोउ आना जेहि श्रुति गाव धरहिं मुनि ध्याना
कहहिं सुनहिं अस अधम नर ग्रसे जे मोह पिसाच
पाषंडी हरि पद बिमुख जानहिं झूठ न साच
हरिमाया बस जगत भ्रमाहीं तिन्हहि कहत कछु अघटित नाहीं
अस निज हृदयँ बिचारि तजु संसय भजु राम पद
सुनु गिरिराज कुमारि भ्रम तम रबि कर बचन मम
सगुनहि अगुनहि नहिं कछु भेदा गावहिं मुनि पुरान बुध बेदा
अगुन अरुप अलख अज जोई भगत प्रेम बस सगुन सो होई
जो गुन रहित सगुन सोइ कैसें जलु हिम उपल बिलग नहिं जैसें
जासु नाम भ्रम तिमिर पतंगा तेहि किमि कहिअ बिमोह प्रसंगा
राम सच्चिदानंद दिनेसा नहिं तहँ मोह निसा लवलेस
सहज प्रकासरुप भगवाना नहिं तहँ पुनि बिग्यान बिहाना
हरष बिषाद ग्यान अग्याना जीव धर्म अहमिति अभिमाना
राम ब्रह्म ब्यापक जग जाना परमानन्द परेस पुराना
पुरुष प्रसिद्ध प्रकास निधि प्रगट परावर नाथ
रघुकुलमनि मम स्वामि सोइ कहि सिवँ नायउ माथ
उमा राम बिषइक अस मोहा नभ तम धूम धूरि जिमि सोहा
बिषय करन सुर जीव समेता सकल एक तें एक सचेता
सब कर परम प्रकासक जोई राम अनादि अवधपति सोई
जगत प्रकास्य प्रकासक रामू मायाधीस ग्यान गुन धामू
जासु सत्यता तें जड़ माया भास सत्य इव मोह सहाया
रजत सीप महुँ भास जिमि जथा भानु कर बारि
जदपि मृषा तिहुँ काल सोइ भ्रम न सकइ कोउ टारि
एहि बिधि जग हरि आश्रित रहई जदपि असत्य देत दुख अहई
जौं सपनें सिर काटै कोई बिनु जागें न दूरि दुख होई
जासु कृपाँ अस भ्रम मिटि जाई गिरिजा सोइ कृपाल रघुरा
आदि अंत कोउ जासु न पावा मति अनुमानि निगम अस गावा
बिनु पद चलइ सुनइ बिनु काना
कर बिनु करम करइ बिधि नाना
आनन रहित सकल रस भोगी
बिनु बानी बकता बड़ जोगी
तनु बिनु परस नयन बिनु देखा
ग्रहइ घ्रान बिनु बास असेष
असि सब भाँति अलौकिक करनी
महिमा जासु जाइ नहिं बरनी
जेहि इमि गावहि बेद बुध जाहि धरहिं मुनि ध्यान
सोइ दसरथ सुत भगत हित कोसलपति भगवान
कासीं मरत जंतु अवलोकी जासु नाम बल करउँ बिसोकी
सोइ प्रभु मोर चराचर स्वामी रघुबर सब उर अंतरजामी
राम ब्रह्म चिनमय अबिनासी सर्ब रहित सब उर पुर बासी
नाथ धरेउ नरतनु केहि हेतू मोहि समुझाइ कहहु बृषकेतू
उमा बचन सुनि परम बिनीता रामकथा पर प्रीति पुनीता
हियँ हरषे कामारि तब संकर सहज सुजान
बहु बिधि उमहि प्रसंसि पुनि बोले कृपानिधान
हरि अवतार हेतु जेहि होई इदमित्थं कहि जाइ न सोई
राम अतर्क्य बुद्धि मन बानी मत हमार अस सुनहि सयानी
तदपि संत मुनि बेद पुराना जस कछु कहहिं स्वमति अनुमाना
द्वारपाल हरि के प्रिय दोऊ जय अरु बिजय जान सब कोऊ
बिप्र श्राप तें दूनउ भाई तामस असुर देह तिन्ह पाई
कनककसिपु अरु हाटक लोचन जगत बिदित सुरपति मद मोचन
बिजई समर बीर बिख्याता धरि बराह बपु एक निपाता
होइ नरहरि दूसर पुनि मारा जन प्रहलाद सुजस बिस्तारा
भए निसाचर जाइ तेइ महाबीर बलवान
कुंभकरन रावण सुभट सुर बिजई जग जान
मुकुत न भए हते भगवाना तीनि जनम द्विज बचन प्रवाना
एक बार तिन्ह के हित लागी धरेउ सरीर भगत अनुरागी
बिप्र श्राप तें दूनउ भाई तामस असुर देह तिन्ह पाई
कनककसिपु अरु हाटक लोचन जगत बिदित सुरपति मद मोचन
बिजई समर बीर बिख्याता धरि बराह बपु एक निपाता
होइ नरहरि दूसर पुनि मारा जन प्रहलाद सुजस बिस्तारा
भए निसाचर जाइ तेइ महाबीर बलवान
कुंभकरन रावण सुभट सुर बिजई जग जान
मुकुत न भए हते भगवाना तीनि जनम द्विज बचन प्रवाना
एक बार तिन्ह के हित लागी धरेउ सरीर भगत अनुरागी