Saturday, May 26, 2007

स्वायंभू मनु अरु सतरूपा

Hare Rama 
स्वायंभू मनु अरु सतरूपा जिन्ह तें भै नरसृष्टि अनूपा
दंपति धरम आचरन नीका अजहुँ गाव श्रुति जिन्ह कै लीका
नृप उत्तानपाद सुत तासू ध्रुव हरि भगत भयउ सुत जासू
लघु सुत नाम प्रिय्रब्रत ताही बेद पुरान प्रसंसहिं जाही
देवहूति पुनि तासु कुमारी जो मुनि कर्दम कै प्रिय नारी
आदिदेव प्रभु दीनदयाला जठर धरेउ जेहिं कपिल कृपाला
सांख्य सास्त्र जिन्ह प्रगट बखाना तत्त्व बिचार निपुन भगवाना
तेहिं मनु राज कीन्ह बहु काला प्रभु आयसु सब बिधि प्रतिपाला
होइ बिषय बिराग भवन बसत भा चौथपन
हृदयँ बहुत दुख लाग जनम गयउ हरिभगति बिनु

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बरबस राज सुतहि तब दीन्हा नारि समेत गवन बन कीन्हा


द्वादस अच्छर मंत्र पुनि जपहिं सहित अनुराग
बासुदेव पद पंकरुह दंपति मन अति लाग

करहिं अहार साक फल कंदा सुमिरहि ब्रह्म सच्चिदानंदा
पुनि हरि हेतु करन तप लागे बारि अधार मूल फल त्यागे
उर अभिलाष निंरंतर होई देखिअ नयन परम प्रभु सोई
अगुन अखंड अनंत अनादी जेहि चिंतहिं परमारथबादी
नेति नेति जेहि बेद निरूपा निजानंद निरुपाधि अनूप
जौं यह बचन सत्य श्रुति भाषा तौ हमार पूजिहि अभिलाषा
एहि बिधि बीते बरष षट सहस बारि आहार।
संबत सप्त सहस्त्र पुनि रहे समीर अधार


बिधि हरि हर तप देखि अपारा मनु समीप आए बहु बारा
मागहु बर बहु भाँति लोभाए परम धीर नहिं चलहिं चलाए
अस्थिमात्र होइ रहे सरीरा तदपि मनाग मनहिं नहिं पीरा

मागु मागु बरु भै नभ बानी परम गभीर कृपामृत सानी
मृतक जिआवनि गिरा सुहाई श्रबन रंध्र होइ उर जब आई

जौं अनाथ हित हम पर नेहू तौ प्रसन्न होइ यह बर देहू
जो सरूप बस सिव मन माहीं जेहि कारन मुनि जतन कराहीं
जो भुसुंडि मन मानस हंसा सगुन अगुन जेहि निगम प्रसंसा
देखहिं हम सो रूप भरि लोचन कृपा करहु प्रनतारति मोचन
दंपति बचन परम प्रिय लागे मुदुल बिनीत प्रेम रस पागे
भगत बछल प्रभु कृपानिधाना बिस्वबास प्रगटे भगवाना

नील सरोरुह नील मनि नील नीरधर स्याम
लाजहिं तन सोभा निरखि कोटि कोटि सत काम

छबिसमुद्र हरि रूप बिलोकी एकटक रहे नयन पट रोकी


चितवहिं सादर रूप अनूपा तृप्ति मानहिं मनु सतरूपा


हरष बिबस तन दसा भुलानी परे दंड इव गहि पद पानी


सिर परसे प्रभु निज कर कंजा तुरत उठाए करुनापुंजा


बोले कृपानिधान पुनि अति प्रसन्न मोहि जानि


मागहु बर जोइ भाव मन महादानि अनुमानि

सुनि प्रभु बचन जोरि जुग पानी धरि धीरजु बोली मृदु बानी

नाथ देखि पद कमल तुम्हारे अब पूरे सब काम हमारे

एक लालसा बड़ि उर माहीं सुगम अगम कहि जात सो नाहीं

तुम्हहि देत अति सुगम गोसाईं अगम लाग मोहि निज कृपनाईं

जथा दरिद्र बिबुधतरु पाई बहु संपति मागत सकुचाई

तासु प्रभाउ जान नहिं सोई तथा हृदयँ मम संसय होई

सो तुम्ह जानहु अंतरजामी पुरवहु मोर मनोरथ स्वामी

सकुच बिहाइ मागु नृप मोही मोरें नहिं अदेय कछु तोही

देखि प्रीति सुनि बचन अमोले एवमस्तु करुनानिधि बोले

आपु सरिस खोजौं कहँ जाई नृप तव तनय होब मैं आई

सतरूपहि बिलोकि कर जोरें देबि मागु बरु जो रुचि तोरे

जो बरु नाथ चतुर नृप मागा सोइ कृपाल मोहि अति प्रिय लागा

सोइ सुख सोइ गति सोइ भगति सोइ निज चरन सनेहु

सोइ बिबेक सोइ रहनि प्रभु हमहि कृपा करि देहु

सुनु मृदु गूढ़ रुचिर बर रचना कृपासिंधु बोले मृदु बचना
जो कछु रुचि तुम्हरे मन माहीं मैं सो दीन्ह सब संसय नाहीं
मातु बिबेक अलौकिक तोरें कबहुँ मिटिहि अनुग्रह मोरें  
बंदि चरन मनु कहेउ बहोरी। अवर एक बिनती प्रभु मोरी
सुत बिषइक तव पद रति होऊ मोहि बड़ मूढ़ कहै किन कोऊ
मनि बिनु फनि जिमि जल बिनु मीना मम जीवन तिमि तुम्हहि अधीना
अस बरु मागि चरन गहि रहेऊ एवमस्तु करुनानिधि कहेऊ
अब तुम्ह मम अनुसासन मानी बसहु जाइ सुरपति रजधानी
तहँ करि भोग बिसाल तात गएँ कछु काल पुनि
होइहहु अवध भुआल तब मैं होब तुम्हार सुत

Hare Rama