Wednesday, August 1, 2007

तब रघुबीर अनेक बिधि सखहि सिखावनु दीन्ह राम रजायसु सीस धरि भवन गवनु तेँइँ कीन्ह

सुनत तीरवासी नर नारी धाए निज निज काज बिसारी
लखन राम सिय सुन्दरताई देखि करहिं निज भाग्य बड़ाई
अति लालसा बसहिं मन माहीं नाउँ गाउँ बूझत सकुचाहीं
जे तिन्ह महुँ बयबिरिध सयाने तिन्ह करि जुगुति रामु पहिचाने
सकल कथा तिन्ह सबहि सुनाई बनहि चले पितु आयसु पाई
सुनि सबिषाद सकल पछिताहीं रानी रायँ कीन्ह भल नाहीं
तेहि अवसर एक तापसु आवा तेजपुंज लघुबयस सुहावा
कवि अलखित गति बेषु बिरागी मन क्रम बचन राम अनुरागी

सजल नयन तन पुलकि निज इष्टदेउ पहिचानि
परेउ दंड जिमि धरनितल दसा जाइ बखानि

राम सप्रेम पुलकि उर लावा परम रंक जनु पारसु पावा
मनहुँ प्रेमु परमारथु दोऊ मिलत धरे तन कह सबु कोऊ
बहुरि लखन पायन्ह सोइ लागा लीन्ह उठाइ उमगि अनुरागा
पुनि सिय चरन धूरि धरि सीसा जननि जानि सिसु दीन्हि असीसा
कीन्ह निषाद दंडवत तेही मिलेउ मुदित लखि राम सनेही
पिअत नयन पुट रूपु पियूषा मुदित सुअसनु पाइ जिमि भूखा

तब रघुबीर अनेक बिधि सखहि सिखावनु दीन्ह
राम रजायसु सीस धरि भवन गवनु तेँइँ कीन्ह

पुनि सियँ राम लखन कर जोरी जमुनहि कीन्ह प्रनामु बहोरी
चले ससीय मुदित दोउ भाई रबितनुजा कइ करत बड़ाई
पथिक अनेक मिलहिं मग जाता कहहिं सप्रेम देखि दोउ भ्राता

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एहि बिधि पूँछहिं प्रेम बस पुलक गात जलु नैन।
कृपासिंधु फेरहि तिन्हहि कहि बिनीत मृदु बैन