अनुचित उचित काजु किछु होऊ समुझि करिअ भल कह सबु कोऊ
सहसा करि पाछैं पछिताहीं कहहिं बेद बुध ते बुध नाहीं
सुनि सुर बचन लखन सकुचाने राम सीयँ सादर सनमाने
कही तात तुम्ह नीति सुहाई सब तें कठिन राजमदु भाई
जो अचवँत नृप मातहिं तेई नाहिन साधुसभा जेहिं सेई
सुनहु लखन भल भरत सरीसा बिधि प्रपंच महँ सुना न दीसा
भरतहि होइ न राजमदु बिधि हरि हर पद पाइ
कबहुँ कि काँजी सीकरनि छीरसिंधु बिनसाइ