Saturday, September 15, 2007
तुम्हहि छाड़ि गति दूसरि नाहीं राम बसहु तिन्ह के मन माहीं
काम कोह मद मान न मोहा लोभ न छोभ न राग न द्रोहा
जिन्ह कें कपट दंभ नहिं माया तिन्ह कें हृदय बसहु रघुराया
सब के प्रिय सब के हितकारी दुख सुख सरिस प्रसंसा गारी
कहहिं सत्य प्रिय बचन बिचारी जागत सोवत सरन तुम्हारी
तुम्हहि छाड़ि गति दूसरि नाहीं राम बसहु तिन्ह के मन माहीं
जननी सम जानहिं परनारी धनु पराव बिष तें बिष भारी
जे हरषहिं पर संपति देखी दुखित होहिं पर बिपति बिसेषी
जिन्हहि राम तुम्ह प्रानपिआरे तिन्ह के मन सुभ सदन तुम्हारे
स्वामि सखा पितु मातु गुर जिन्ह के सब तुम्ह तात
मन मंदिर तिन्ह कें बसहु सीय सहित दोउ भ्रात
अवगुन तजि सब के गुन गहहीं बिप्र धेनु हित संकट सहहीं
नीति निपुन जिन्ह कइ जग लीका घर तुम्हार तिन्ह कर मनु नीका
गुन तुम्हार समुझइ निज दोसा जेहि सब भाँति तुम्हार भरोसा
राम भगत प्रिय लागहिं जेही तेहि उर बसहु सहित बैदेही
जाति पाँति धनु धरम बड़ाई प्रिय परिवार सदन सुखदाई
सब तजि तुम्हहि रहइ उर लाई तेहि के हृदयँ रहहु रघुराई
सरगु नरकु अपबरगु समाना जहँ तहँ देख धरें धनु बाना
करम बचन मन राउर चेरा राम करहु तेहि कें उर डेरा