जाहि न चाहिअ कबहुँ कछु तुम्ह सन सहज सनेहु
बसहु निरंतर तासु मन सो राउर निज गेहु
एहि बिधि मुनिबर भवन देखाए बचन सप्रेम राम मन भाए
कह मुनि सुनहु भानुकुलनायक आश्रम कहउँ समय सुखदायक
चित्रकूट गिरि करहु निवासू तहँ तुम्हार सब भाँति सुपासू
सैलु सुहावन कानन चारू करि केहरि मृग बिहग बिहारू
नदी पुनीत पुरान बखानी अत्रिप्रिया निज तपबल आनी
सुरसरि धार नाउँ मंदाकिनि जो सब पातक पोतक डाकिनि
अत्रि आदि मुनिबर बहु बसहीं करहिं जोग जप तप तन कसहीं
चलहु सफल श्रम सब कर करहू राम देहु गौरव गिरिबरहू
चित्रकूट महिमा अमित कहीं महामुनि गाइ
आए नहाए सरित बर सिय समेत दोउ भाइ
रघुबर कहेउ लखन भल घाटू करहु कतहुँ अब ठाहर ठाटू
लखन दीख पय उतर करारा चहुँ दिसि फिरेउ धनुष जिमि नारा
नदी पनच सर सम दम दाना सकल कलुष कलि साउज नाना
चित्रकूट जनु अचल अहेरी चुकइ न घात मार मुठभेरी
अस कहि लखन ठाउँ देखरावा थलु बिलोकि रघुबर सुखु पावा
रमेउ राम मनु देवन्ह जाना चले सहित सुर थपति प्रधाना
कोल किरात बेष सब आए रचे परन तृन सदन सुहाए
बरनि न जाहि मंजु दुइ साला एक ललित लघु एक बिसाला