श्रुति सेतु पालक राम तुम्ह जगदीस माया जानकी
जो सृजति जगु पालति हरति रूख पाइ कृपानिधान की
जो सहससीसु अहीसु महिधरु लखनु सचराचर धनी
सुर काज धरि नरराज तनु चले दलन खल निसिचर अनी
राम सरुप तुम्हार बचन अगोचर बुद्धिपर
अबिगत अकथ अपार नेति नित निगम कह
जगु पेखन तुम्ह देखनिहारे बिधि हरि संभु नचावनिहारे
तेउ न जानहिं मरमु तुम्हारा औरु तुम्हहि को जाननिहारा
सोइ जानइ जेहि देहु जनाई जानत तुम्हहि तुम्हइ होइ जाई
तुम्हरिहि कृपाँ तुम्हहि रघुनंदन जानहिं भगत भगत उर चंदन
चिदानंदमय देह तुम्हारी बिगत बिकार जान अधिकारी
नर तनु धरेहु संत सुर काजा कहहु करहु जस प्राकृत राजा
राम देखि सुनि चरित तुम्हारे जड़ मोहहिं बुध होहिं सुखारे
तुम्ह जो कहहु करहु सबु साँचा जस काछिअ तस चाहिअ नाचा